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भारत की खोज
भी सहारा चाहते हैं। कहते हैं ना आदमी डूवता हो तो तिनके का भी सहारा पकड़ लेता है। फिर इसी भय में वह कहता है कि, 'मेरे गुरु वहुत महान गुरु हैं, इसलिए नहीं कि उसको पता चल गया है कि वह महान हैं। बल्कि अपने को समझाता है कि अगर म हान नहीं हैं तो मैं डूवा, तो अपने गुरु को महान वताता है, अपने तीर्थांकर को श्रेष ठ बताता है। अपने अवतार को असली बताता है। दूसरों के अवतारों को नकली व ताता है क्योंकि वह यह कह रहा है कि मेरी सुरक्षा मजबूत होनी चाहिए जो मैंने प कड़ा है वह सच्चा और खरा है। वह आंख बंद करके पकड़ता है। वह आंख बंद कर के ही पकड़े रहता है। वह कभी आंख खोलकर देखता भी नहीं कि यह क्या हो रहा है? वह देख भी नहीं सकता। वह डरा हुआ है वह खुद ही डरा हुआ है वह आंख खोलकर देखेगा तो एक आदमी पाएगा अपने ही जैसा जिसके वह चरण पकड़े हुए है
और भगवान समझे हुए है। लेकिन वह आंख नहीं खोलेगा, और आप आंख खोलने को कहेंगे तो वह नाराज होग । भय भीतर है। अगर आप आंख खोलकर देखने को कहते हैं तो खतरा है कि कह गुरु विलीन न हो जाए। कहीं भगवान खो ना जाए, कहीं मूर्ति ना मिट जाए, कहीं मंदिर खो ना जाएं, कहीं प्रार्थनाएं भूल ना जाएं फिर क्या होगा मैं तो अकेला हूं। लेकिन सच यह है कि आप अकेले ही हैं। इस सत्य को झूठलाने से कुछ भी ना होग Tआदमी अकेला है आदमी बिलकुल अकेला है और कोई सहारा नहीं है और जिंद गी असुरक्षा है। और सब सुरक्षाएं काल्पनिक इमेजिनरी हैं। यह सत्य जितना स्पष्ट ह ो जाए, और इस सत्य की जितनी स्वीकृति हो जाए आदमी उतना ही भय से मुक्त
हो जाता है। और जब आदमी भय से मुक्त हो जाता है तो पुराने से मुक्त हो जाता है। और जब आदमी भय से मुक्त हो जाता है तो शास्त्रों से मुक्त हो जाता है। और जब आदमी भय से मुक्त हो जाता है तो गुरुओं से मुक्त हो जाता है। और जव आदमी भय से मुक्त हो जाता है तो समाज, परंपरा रूढ़ियां उनसे मुक्त हो जाता है। और जिसकी प्रतिभाएं इन सबसे मुक्त हैं पहली बार उस इनटेलीजेंस का, उस चेतना का, उस बुद्धिमत्ता का जन्म होता है जो सत्य को जान सकती है। उस बुद्धिमत्ता का, उस वि जिडम का जन्म होता है जो जीवन की हर समस्या का साक्षात्कार कर सकती है उस सजगता को उस बोध का जन्म होता है जिस वोध की अग्नि में जीवन की कोई चिंता नहीं दिखती हर चिंता का अतिक्रमण हो जाता है। और वैसा अतिक्रमण अग र चेतना प्रतिभा ना कर पाए, तो जीवन एक बोझ है, जीवन एक भार है, जीवन एक दुःख है। दुःख होगा ही क्योंकि हम गलत, हम बिलकुल ही गलत, हम बिलकुल
ही काल्पनिक, हम बिलकुल ही झूठी दुनिया में खो गए हैं जो है ही नहीं। भारत की पूरी चेतना पीछे की तरफ देख रही है भविष्य के भय के कारण। भारत की पूरी
चेतना गुरुओं को पकड़े हुए है। अकेले होने के डर के कारण पति पत्नी को पकड़े हुए है। पत्नी पति को पकड़े हुए है। दोनों अकेले हैं दोनों डरे हुए है दोनों एक दूसरे
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