Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 59
________________ भारत की खोज ठहराएगी नहीं। मकान उसने छोड़ दिया क्योंकि मस्जिद ठहरने को मिल गई है । अग र वह गुरु होना छोड़ दे तो शिष्य उसको छोड़ देंगे। उसने बाप था बेटे छोड़ दिए हैं लेकिन उसने एक बेटे छोड़ कर उसने पचास बेटे इकट्ठे कर लिए हैं। शिष्य इकट्ठे कर लिए है शिष्याएं इकट्ठी कर ली हैं । और फिर सुरक्षा का इंतजाम इकट्ठा कर लि या है। घर छोड़ दिया है। अब एक आश्रम बना लिया है। लेकिन सुरक्षा के नए उपाय कर लिए हैं। और एक नई सुरक्षा उसने यह कर ली है कि वह भगवान को पाने की कोशिश में लगा है वह पुण्य कर रहा है, पुण्य धन क ा सिक्का है, मोक्ष में चलता है यहां नहीं चलता । वह पुण्य इस लिए कर रहा है कि सिक्का चल सके स्वर्ग में, मोक्ष में, भगवान को पा लिया है। भगवान को पाने की कोशिश कर रहा है, वह मोक्ष पाने की कोशिश कर रहा है। इस मोक्ष का मतलब, जहां कोई समस्या नहीं होगी । सिद्ध शिला पर बैठ कर सारी समस्याओं से आदमी मु क्त हो जाएगा। लेकिन जहां कोई समस्या नहीं होगी वहां कोई जीवन भी नहीं होगा । समस्याओं से बचने की कोशिश जीवन से बचने की कोशिश है। समस्याओं को जीतन है इसलिए नहीं कि समस्याएं समाप्त हो जाएंगी, बल्कि इसलिए कि नई समस्याएं खड़ी होंगी। जीवन एक सतत संघर्ष है। समस्याएं कभी समाप्त नहीं हो जाएंगी। एक समस्या बदलेगी नई समस्या होगी। नीचे की समस्याएं बदलेंगी ऊपर की समस्याएं ह ोंगी। गरीब आदमी के सामने एक समस्या होती है भूख की, अभाव की । अमीर आद मी के सामने एक दूसरी समस्या खड़ी हो जाती है, अतिरेक की, एफोलुएंस की । हिं दूस्तान की समस्या है पेट कैसे भरे, अमरीका की समस्या है पेट भर गया अब क्या करें। योग करें, ध्यान करें, माला फेरें क्या करें ? अमरीका की समस्या वही है जो बुद्ध और महावीर की समस्या रही होगी । अमीर के बेटे थे, पेट भरा था, कपड़े उपलब्ध थे, सब उपलब्ध था जो उपलब्ध हो सकता था । फिर समस्या खड़ी हो गई अब सब है अब क्या करें। समस्याएं मिट नहीं सकती, समस्याओं के तल बदलते हैं। और चेतना ऐसी होनी चाहिए जो हर तल पर हर नई समस्या का साक्षात कर सके आनंद से भय से नहीं। क्योंकि भय से किया गया सा क्षात कभी साक्षात नहीं हो सकता। स्वीकार से अस्वीकार से नहीं क्योंकि जिसने अस् वीकार किया वह पीठ कर लेता है। पीठ करके कभी साक्षात नहीं हो सकता। सहज भाव से कि जीवन ऐसा है और जीवन जैसा है और जैसा होगा वैसा मुझे अंगीकार है। मैं दावे नहीं करता कि वह ऐसा ही हो जैसा कल था । आने वाला कल बिलकुल नया होगा, आने वाला सूरज बिलकुल नया सूरज होगा, सु बह उठेंगे फिर कल का सक्षात्कार करेंगे, नहीं उठ सके तो मौत का साक्षात्कार करें गे। जो होगा उसका साक्षात्कार करेंगे। और हमारी तैयारी इतनी होनी चाहिए कि ह म हर साक्षात्कार के बाद ज्यादा अज्ञान, ज्यादा आनंद, ज्यादा अनुभव, ज्यादा जीवंत होकर बाहर निकल आएगे। लेकिन इतनी हिम्मत नहीं है, इतना करेज नहीं है इस Page 59 of 150 http://www.oshoworld.com

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