Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 60
________________ भारत की खोज लए पुराने को पकड़े हुए बैठे हैं। पुराने को पकड़ना हमेशा साहस की कमी है भय क [ लक्षण है। इसलिए पहली बात अगर परंपरावाद से भारत की प्रतिभा को मक्त होना हो तो भ य छोड़ देना पड़ेगा। और सबसे बड़ा भय जीवन का भय है। और जीवन के भय से ही मृत्यु का भय पैदा होता है। जो जीवन से डरते हैं वे ही मृत्यु से डरते हैं। जो ज विन को जीते हैं वह मृत्यु को भी जीते हैं। उन्हें कोई भी भय नहीं, भय का कोई सवाल नहीं, और भयभीत होकर जीवन बदल नहीं जाता, सिर्फ हम एक मेंटल कैप्सू ल में एक झूठी कल्पना के घेरे में अपने को बंद कर लेते हैं। मेरे एक मित्र हैं बूढ़े हैं। कुछ दिनों से उन्होंने सव पूजा-पाठ मंदिर जाना सब छोड़ ि दया था। मुझसे कहते थे, के 'सव मैंने छोड़ दिया। अब मैं सबसे मुक्त हो गया हूं।' मैंने उनसे कहा, 'आप बार-बार कहते हैं कि सब छोड़ दिया, सबसे मुक्त हो गया। इससे शक होता है कि ठीक से मुक्त नहीं हो पाए हैं ठीक से छूट नहीं पाया है।' फर उनको हृदय का दौरा हुआ स्टआटैक हुआ। मैं उन्हें देखने गया, वह करीब-कर वि आधी बेहोशी में पड़े थे। और बेहोशी में उनके मुंह से राम-राम, राम-राम का प ठ चल रहा था। मैंने उन्हें हिलाया मैंने पूछा, 'यह क्या कर रहे हो? तुम तो कहते थे सब छोड़ दिया। वह कहने लगे, मैं भी सोचता था कि छोड़ दिया लेकिन यह मौत सामने आई तो नामालूम कैसे मशीन की तरह भीतर से राम-राम होने लगा । क करो राम-राम, कहीं राम होना और अगर हुआ तो भूल हो जाएगी फिर हर्ज भी क्या है।' राम-राम जप लेने में हर्ज भी क्या नहीं हुआ, तो कुछ हर्ज ना हुआ, और अगर हुअ [ तो सुरक्षा का इंतजाम कर लिया। वह मौत सामने खड़ी है तो आदमी राम-राम जप रहा है, वह जो मंदिरों में हाथ जोड़े खड़े हैं उन्हें भगवान से कोई मतलब नहीं है, वह जो मालाएं फेर रहे हैं उन्हें भगवान से कोई मतलब नहीं है, और वह जो श स्त्रिों में आंखें गढ़ाए हुए कंठस्थ कर रहे हैं सूत्रों को, उनको भगवान से कोई मतलव नहीं है। यह सब भय से पैदा हुई प्रवृत्तियां हैं। जिसे हम धर्म कहते हैं वह हमारा ि फयर है। और वह धर्म जो अभय से फियरलैसनैस से आता है उसका हमें कोई पता ही नहीं। यह जो मंदिर और मस्जिद और यह जो पूजा और काबा और काशी खड़े हैं यह मनु प्य के भय से उत्पन्न हुए हैं। और यह जो मूर्तियां और यह जो भगवान की पूजाएं चल रही हैं यह मनुष्य के भय से जन्मी हैं। हम भयभीत है, हम डरे हुए हैं, हम सु रक्षा चाहते हैं। अज्ञात से हम सुरक्षा चाहते हैं हम किसी के चरण पकड़ना चाहते हैं , हम कोई सहारा चाहते हैं। यह जो गुरुढम चल रही है सारे देश में, यह जो जगह -जगह छोटे-बड़े गुरु, छोटे-बड़े महात्मा, आधे और पूरे महात्मा इकट्ठे हैं सारे मुल्क में, और उनके आसपास लोग चरण पकड़े हुए हैं यह गुरुढम किसी ज्ञान या किसी स त्य की खोज से नहीं चल रही है। भय, हम डरे हुए हैं और डरने में हम किसी का Page 60 of 150 http://www.oshoworld.com

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