Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ भारत की खोज स्था हो गई है कि इसमें अगर सुख और शांति से जीना हो तो बिना किसी बात को छेड़े, जो कहा गया हो सब को ठीक कहने से बड़ा आराम रहता है। मेरे पास आप आएं और कहें कि सब ठीक है मैं कहता हूं सब ठीक है गीता तो अमृत वचन है। आप मेरा पैर छूएंगे अब मैं फिर इसकी झंझट में क्यों पढू कि नहीं सब अमृत वचन नहीं है। तो मेरा पैर भी नहीं छूएंगे, और आज नहीं कल डंडा लेकर मेरे पीछे घूमें गे। फायदा क्या है? इस मुल्क के चित्त को जरा भी क्रांति की तरफ ले जान की क ोशिश करो तो वह क्रोध से भर जाता है। ऐसा ही पश्चिम में भी हुआ । तीन सौ सा ल में पश्चिम के थोड़े से लोगों ने जितनी तपश्चर्या की है तुम्हारे हिंदुस्तान के सारे ऋषि-मुनियों ने मिलकर भी कभी नहीं की। वह थोड़े से लोग वह नहीं है जो झाडों के नीचे बैठे हैं। वह थोड़े से वह लोग है जिन्होंने पश्चिम की हजारों साल की मान सक गुलामी को वैज्ञानिक चिंतन से तोड़ने की कोशिश की । तीन सौ वर्ष में थोड़े से लोगों ने जो तप किया है वहां, उस तप का फल सारी दुनि या भोग रही है। सारी दुनिया को उससे सुख मिल रहा है लेकिन कुछ लोगों ने बहु त दुःख भोगा है। गल्लियो ने जब पहली बार कहा कि, 'पृथ्वी चक्कर लगाती है सूर ज का, सूरज नहीं लगाता चक्कर । तो सारा पश्चिम पागल हो गया । और गल्लियों को हथकड़ियां डाल कर अदालत में लाया गया कि तुम क्षमा मांगो। तुमने गलत बा त कही है। क्योंकि वाइविल में तो लिखा है कि पृथ्वी का चक्कर सूरज लगाता है। और दिखता भी तो यही है कि सूरज रोज चक्कर लगाता है। तुम मांफी मांगो लिखित, सत्तर साल का बूढ़ा आदमी, उसे सैंकड़ों मील पैदल चला कर लाया गया अदालत में और उससे कहा गया कि मांफी मांगो अन्यथा फांसी हो जाएगी। वह बूढ़ा आदमी हंसा और उसने एक कागज पर लिखा, वह दस्तावेज बड़ी अद्भुत है इसमे गल्लियों ने लिखा, 'तुम कहते हो, तो मैं माने लेता हूं कि सूरज ह पृथ्वी का चक्कर लगाता होगा, लेकिन मैं क्या कर सकता हूं, लगाती तो पृथ्वी ही सूरज का चक्कर है। मैं क्या कर सकता हूं, तुम कहते हो झंझट हम खड़ी नहीं क रते ठीक है। लेकिन सच बात तो यही है कि चक्कर तो पृथ्वी ही सूरज का लगाती है। मैं इसमें कुछ कर भी नहीं सकता। अब मैं जो कहता हूं इसके लिए मांफी मांगे लेता हूं। लेकिन पृथ्वी चक्कर लगाती है इसके लिए मैं कैसे मांफी मांगूं । पृथ्वी लगा ती है इसमें मैं क्या कर सकता हूं।' यह तीन सौ वर्षों ने थोड़े से पश्चिम के लोगों ने हिम्मत की, हिम्मत किस बात की करनी पड़ी। सबसे बड़ी हिम्मत करनी पड़ती है आदर छोड़ने की । और हिंदुस्तान के विचारक आदर छोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। हिंदुस्तान का कोई विचारक अ ादर छोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। हिंदुस्तान का कोई विचारक आदर छोड़ने क हिम्मत नहीं जुटा पाता । मकान छोड़ना आसान है, धन छोड़ना आसान है, पत्नी ब च्चे छोड़ना आसान है, सबसे कठिन बात है आदर छोड़ना और हिंदुस्तान में वेवकुफि यों के मानने के लिए आदर मिलता है। और अगर उनको छोड़िये तो आदर मिलना बंद हो जाता है। Page 38 of 150 http://www.oshoworld.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150