Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 39
________________ भारत की खोज तो हिंदस्तान में एक. एक व्यवस्था कर रखी है आदर उसका दो जो तुम्हारी सारी ना समझियों को स्वीकार करता हो। और जो तुम्हारी ना समझियों को इनकार करत । हो उसको आदर देना बंद करो। और हिंदुस्तान में अभी इतने हिम्मतवर विचारकों की धारा खडी नहीं हो पाई है कि वह हिम्मत करें और आदर को लात मार दें। और कहें कि जो ठीक है हम वही कहेंगे. चाहे अनादर मिले चाहे फांसी मिले। मेरा अपना मानना यह है कि हिंदुस्तान की प्रतिभा ने अभी भी तपश्चर्या शुरू नहीं की, धूप में खड़ा होना तपश्चर्या नहीं है सरकस का खेल है। और दो चार दिन खड़े हो जाएं तो अभ्यास हो जाता है। फिर मकान के भीतर खड़े होने में तकलीफ होती है। भूखा मरना कोई तपश्चर्या नहीं है, सिर्फ अभ्यास है। दो चार दस दिन महीने भर भू खे रह जाएं, तो फिर खाना खाने में बड़ी मुश्किल होती है। इन सारी बातों को हम तपश्चर्या कह रहे हैं। तपश्चर्या सिर्फ एक है, सत्य के लिए सब तरह के सम्मान क ो छोड़ने की हिम्मत को छोड़ने की हिम्मत के अतिरिक्त प्रतिभा के सामने और कोई तपश्चर्या नहीं है। लेकिन हिंदुस्तान ऐसी हिम्मत नहीं जुटा पाया या जब उसने हिम मत जुटाई थोड़े से लोगों ने तो कुछ विचार पैदा हुआ और फिर खो गया। अब जरू रत है अगर हिंदुस्तान में वैज्ञानिक चिंतन पैदा करना है और मैं आपसे कहता हूं अ गर वैज्ञानिक चिंतन नहीं पैदा होता है तो आने वाली सदी में हम कहीं के भी नहीं होंगे, हम धूल में मिल जाएंगे। वैज्ञानिक चिंतन पैदा करना है तो कुछ लोगों को हिम्मत जुटानी पड़ेगी कि वह सत्य के लिए बलिदान हो जाएं। असत्य के लिए तो बहुत बलिदान हो चुके, मुसलमानों के लिए बलिदान हो चुके, हिंदूओं के लिए बलिदान हो चुके, जैनियां के लिए बलिदा न हो चुके, ईसाईयों के लिए वलिदान हो चुके यह सव असत्य के लिए वलिदान हैं। सत्य के लिए वलिदान मुश्किल से हुए हैं। और सत्य के लिए वलिदान ना हो तो ि वज्ञान का जन्म नहीं हो सकता कुछ लोगों को हिम्मत जुटानी पड़ेगी। कुछ लोगों को सारे सम्मान, सारे आदर की फिक्र छोड़ देनी पड़ेगी। अपमानित होने की हिम्मत क रनी पड़ेगी। और वह अगर नहीं होता है तो फिर कैसे विज्ञान का जन्म हो, कैसे वि चार का जन्म हो। और बच्चों को संदेह की शिक्षा देनी पड़ेगी। उनके खून में संदेह भर देना पड़ेगा कि वह कभी भी किसी कीमत पर मानने को राजी ना हों जब तक जान ना लें, हां ना जानें तो ना मानने के लिए भी आग्रह ना करें। दो तरह के विश्वास होते हैं एक अ स्तिक का विश्वास होता है एक नास्तिक का। आस्तिक कहता है ईश्वर है और मान ता है जानता नहीं। नास्तिक कहता है कि ईश्वर नहीं है मानता है जानता नहीं। यह दोनों विश्वास हैं। और यह दोनों खतरनाक हैं इन दोनों से विज्ञान का जन्म नहीं ह ो सकता। इन दोनों से विज्ञान में बाधा पड़ेगी। और जहां भी विश्वास होता है वहीं ि वज्ञान में वाधा पड़ती है। चाहे वह विश्वास किसी तरह का क्यों ना हो। अगर नासि तक का विश्वास भी जोर पकड़ जाए, तो विज्ञान में वाधा डालता है। क्योंकि विश्वा स पाता है। Page 39 of 150 http://www.oshoworld.com

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