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भारत की खोज
सी कोने में जान रहा हो, उसका जाना हुआ सबका एक साथ हो जाता है। वह सब का जाना हुआ हो जाता है।
लेकिन यह धार्मिक गुरु इनका जाना हुआ एक नहीं हो पाता क्यों । क्योंकि यह विनम्र नहीं हैं। यह जानकर आप हैरान होंगे कि धर्म कहते हैं कि विनम्र बनो। और धर्मों जितना आदमी को इगोइसट बनाया, अहंकारी बनाया। उतना किसी ने भी नहीं व नाया। और विज्ञान कभी भी नहीं कहता कि विनम्र बनो, जिसको वैज्ञानिक बनना है उसे विनम्र बनना पड़ता है, उसे हंबल होना पड़ेगा। पहली ह्यमिलीटी तो उसे यह सीखनी पड़ती है कि मैं जानता नहीं हूं। दूसरी विनम्रता उसे यह सीखनी पड़ती है क जो भी जान लिया वह कल गलत हो सकता है। तीसरी विनम्रता उसे यह सीखन की पड़ती है कि जो मैं जानता हूं वह बहुत अल्प है, जो मैं नहीं जानता हूं वह अनंत है।
इसलिए वैज्ञानिक इगोइस्ट नहीं हो सकता। और धार्मिक आदमी जिसको हम धार्मिक कहते हैं, मैं नहीं। धार्मिक आदमी एक दम अहंकारी होता है। वह दावे करता है क सत्य हमारे पास मेरी मुट्ठी में है और किसी की मुट्ठी में नहीं है और जो मेरे पा स आएगा वही जा सकता है स्वर्ग। और जो मेरे पास नहीं आया वह नहीं जाएगा। फर उसके भक्त बेचारे, सेवा भाव के कारण दूसरों को भी उसकी मुट्ठी में लाने की कोशिश करते हैं वह सिर्फ दया भाव के कारण मुसलमान सोचता है कि सब दुनिया को मुसलमान बनाओ। क्यों, क्योंकि अगर मुसलमान दुनिया ना बन पाई तो सब नर क में पड़े रहेंगे स्वर्ग नहीं जा सकते हैं। स्वर्ग तो मुसलमान ही जा सकते हैं। ईसाई सोचता है कि सबको ईसा के झंडे के नीचे लाओ। यह दया के कारण कि जो आदमी ईसाई नहीं बना वह बेचारा भटक जाएगा। नरक की अग्नियों में सड़ेगा। ई साई बनाओ उसे, किसी भी तरह बनाओ, पैसा देकर बनाओ, धमका कर बनाओ, जबरदस्ती बनाओ, गरीब का शोषण करके बनाओ, कोई प्रलोभन भय कुछ भी देकर बनाओ, यह दयावश। यह बड़ी अद्भुत दया है । उसको बनाओ तकी वह स्वर्ग जा सके। तो सारी दुनिया में वह विश्वास और ज्ञान के दावे में विज्ञान की हत्या की है कि वह विकसित नहीं हुआ ? और भारत में यह हवा इतनी तेज है जिसका कोई हि साब नहीं।
कोई भी आदमी कहता है कि मैं जगतगुरु हूं। बिना जगत से पूछे हुए। अभी एक ज गतगुरु मेरे साथ थे पटना में । कुछ बातें मैने कहीं वह एक दम नाराज हो गए, माई क छीन लिया और माईक पर खड़े होकर उन्होंने कहा कि, 'मैं जगतगुरु हूं। सर्व शा स्त्रों का ज्ञाता। मैं जो कहता हूं वही ठीक है । जगतगुरु अगर हैं तो फिर जो कहते हैं वह ठीक ही है। क्योंकि फिर कोई उपाय नहीं रहा उनसे झंझट करने का, सर्व शा स्त्रों के ज्ञाता, वह जो कहते हैं ठीक ही है । उसमें कुछ गलत हो नहीं सकता । यह दावा वैज्ञानिक बुद्धि नहीं कर सकती । वैज्ञानिक बुद्धि सदा विनम्र है वह कहती हैं आप जो कहते हैं वह भी ठीक हो सकता है। लेकिन सोचें विचार करें मेरा तर्क आप सुनें, आपके तर्क को मैं सुनूं, खोजे संदेह करें, हो सकता है जो सही हो वह वि
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