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भारत की खोज
वाला हिंदू के मंदिर में नहीं आता। यह तो दूर की बातें हैं शिव के मंदिर में जाने वाला विष्णु के मंदिर में नहीं जाता। क्योंकि दूसरे की बात सुनने से गड़बड़ा सकता है मामला। अगर बस चले तो बिनाका वाले कभी पसंद नहीं करेंगे कि आपको दूसरे टूथपेस्ट की वात सुनने को मिल जाएं। लेकिन जरा मुश्किल है इस पर रोक लगाना। लेकिन ध म गरुओं ने वहत होशियारी की उन्होंने रोक लगा दी विनाका वाला क्या कर सकत । है? अपने बोर्ड लगा सकता है लेकिन दूसरों के बोर्ड थोड़े ही निकाल सकता है।
और रेडियो में अपनी खबर दे सकता है लेकिन दूसरे, टूथपेस्ट वालों की खबर को नहीं रोक सकता। लेकिन धर्मगुरुओं ने यह भी इंतजाम किया है। अपना बोर्ड लगवा ओ, अपनी किताब पढ़ाओ अपना भाषण दो, अपने गुरु से समझवाओ, और दूसरे ग रु के पास जाने मत दो दूसरे की किताब मत पढ़ने दो, दूसरे को बोलने मत दो। सलिए धर्म के मामले में जितना अज्ञान है उतना किसी और मामले में नहीं है। क्य कि धर्म के संबंध में हमें सोचने-विचारने का मौका नहीं दिया गया। सोचता-विचार ता जो है उसका दिमाग खुला चाहिए। पहले इस संबंध में इस देश के बंद मन को तोड़ देने की जरूरत है। सब द्वार खिड़क
खोल देने की जरूरत है। ताजी हवा आए, तो हम वैज्ञानिक चित्त को जन्म दे सक ते हैं। और प्रश्न रह गए वह कल मैं वात करूंगा। कल सुवह परसों के सूत्रों में भी वात करूंगा। जो प्रश्न उनसे संबंधित होंगे उनकी सुबह के सूत्रों में वात हो जाएगी। मेरी बातों को इतनी शांति और प्रेम से सुना, उससे बहुत अनुग्रहित हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं।
मेरा प्रणाम स्वीकार करें।
नए भारत की खोज टाक्स गिवन इन पूना, इंडिया डिस्कोर्स नं ३
मेरे प्रिय आत्मन्, एक छोटी-सी कहानी से आज की बात मैं शुरू करना चाहूंगा। वह कहानी तो आपने सुनी होगी लेकिन अधूरी सुनी होगी। अधूरी ही बताई गई है अब तक, पूरा वताना खतरनाक भी हो सकता है। इसलिए पूरी कहानी कभी बताई भी नहीं गई और अ धूरे सत्य, असत्यों से भी ज्यादा घातक होते हैं। असत्य सीधा असत्य होता है दिखा ई पड़ जाता है। आधे सत्य, सत्य दिखाई पड़ते हैं और सत्य होते नहीं क्योंकि सत्य
कभी आधा नहीं हो सकता है। या तो होता है या नहीं होता। और बहुत-से अधूरे सत्य मनुष्य को वताए गए हैं, इसलिए मनुष्य असत्य से मुक्त नहीं हो पाता। असत्य से मुक्त हो जाना तो बहुत आसान है। अधूरे सत्यों से मुक्त होना बहुत कठिन है
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