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भारत की खोज
अधिकतर जनता पश्चिम में उतनी ही अवैज्ञानिक है जितनी यहां। इसीलिए तो यहां के योगी महाराजों के पीछे वहां पागल इकट्ठे हो जाते हैं । नहीं तो कहां से इकट्ठे हो जाएंगे। यहां का कोई पहुंच जाए तो वहां भी भीड़ इकट्ठी होती है। वह भीड़ लोगों की है वह किन्हीं वैज्ञानिकों की है। वह उसी तरह के लोगों की भीड़ है जिस तरह के लोगों की यहां। लेकिन सफेद चमड़ी का बहुत असर है। अगर दो चार सफे द चमड़ी के पगलों को लेकर इस मुल्क में आ जाओ तो महायोगी हो जाने में देर नहीं लगती। असल में सफेद चमड़ी के हम इतने दिन तक गुलाम रहे हैं कि हमने सफेद चमड़ी में भी सुपेरिटीटि स्वीकार कर ली है। सफेद चमड़ी होना ही बहुत ऊंची बात हो गई है। तो अगर चार पश्चिम के पगले किसी आदमी के पीछे चले आएं.
मुझे मेरे मित्र सहायता देते हैं। कि आप यहां मेहनत मत करिए, पहले आप परि चम चले जाईए वहां के दस पच्चीस लोग आपके साथ आए कि यहां अच्छा परिणाम होगा। मैंने कहा, 'वैसा परिणाम डालना इस मुल्क की गुलामी को बढ़ाना है । वैसा परिणाम डालना ही गलत ढंग है। क्योंकि उसका मतलब क्या है सफेद चमड़ी की जो गुलामी हमारे दिमाग में उसका मजबूत करना है। मैं इस योगी को यहां को ई पूछेगा नहीं, लेकिन बिटल पीछे चले आएगें और सारा हिंदुस्तान दिवाना हो जाएग ा और सारे हिंदुस्तान के नेता और सारे अखवार दिवाने हो जाएंगे। अंग्रेजों की गुला मी से खत्म होना बड़ा मुश्किल मालूम होता है । लगता है कि हम शायद कभी गुला मी के ऊपर नहीं उठ पाएंगे। असल में विश्वास करने वाला चित्त बुनियादी रूप से गु लाम होता है।
और ध्यान रहे जिन पंडित पुरोहितों ने हमें गुलामी की शिक्षा दी थी वे ही पंडित पु रोहित अंग्रेजों की गुलामी और मुसलमानों की लंबी गुलामी का कारण बने। हम गुल मी के लिए राजी हो गए। हमारा माइंड सलेवेरी के लिए राजी हो गया। जो भी कत में है हम उसी को मानने लगे। और आज अगर आपके बेटे पश्चिम जाते हैं डि ग्री लेने तो आप यह मत समझना कि विज्ञान की शिक्षा लेने जा रहे हैं। आज पश्चि म की प्रतिष्ठा है। पश्चिम की डिग्री की प्रतिष्ठा है। और आज पश्चिम में विज्ञान की इज्जत है। आपके बेटे जो इसमें विश्वास करके उसकी शिक्षा लेने जाते हैं उनके म न में कोई विज्ञान की खोज नहीं है। और आप भी जो उन्हें भेजते हैं कोई विज्ञान क खोज के लिए नहीं भेजते। आप उन्हें भेजते हैं कि वहां से वे डिग्रीयां लेकर आते
है तो उसी डिग्री की हैसियत का इस मुल्क में तीन सौ पाता है। वही आदमी इंग्लैंड और जर्मनी डिग्री लेकर आता है। तो बारह सौ पाता है।
तो आप भी जानते हैं कि पश्चिम की डिग्री की प्रतिष्ठा है । इसलिए विश्वास करके वहां चले जाते हैं। इसमें विश्वास जैसी कोई विज्ञान की खोज नहीं है। भारत के मानस में वह क्रांति पैदा नहीं हो पाई जिससे विज्ञान जन्मे । पश्चिम में भी थोड़े से मानस वैज्ञानिक हुए हैं। सभी मानस वैज्ञानिक नहीं हो गए हैं। और उन थोड़े से लोगों ने जिन्होंने विज्ञान को पश्चिम में जन्म दिया बहुत तकलीफ उठानी पड़ी। हिंदुस्तान में कोई तकलीफ उठाने को राजी नहीं है। हिंदुस्तान की इतनी पुरानी व्यव
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