Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 26
________________ भारत की खोज शक्षक समझाता है कि जमीन में कशिश है इसलिए चीजें जमीन की तरफ गिर जात हैं। वह बच्चा इसमें भी विश्वास करता है। वह विज्ञान की शिक्षा लेकर लौटता है लेकिन उसके दिमाग में डाऊट पहले ही हआ है वह विज्ञान पर भी विलीफ करता है. उसकी विलीफ बदल गई है। वह गीता पर विश्वास ना करके आस्टिन पर विश्वास करने लगा लेकिन विश्वास करना जारी है। और जो आदमी विश्वास करता है वह कभी वैज्ञानिक नहीं हो सकता। विज्ञान का पहला सूत्र है संदेह, लेकिन ना मां-बाप चाहते हैं कि बेटे संदेह करें। क्योंकि संदेह ब गावती है संदेह रिवैलियन है। अगर वेटे संदेह करेंगे तो मां-बाप का बहुत-सा ज्ञान झूठा सिद्ध होगा। और किसी आदमी का अहंकार यह मानने को राजी नहीं होता कि मेरे बेटे मेरे ज्ञान को झूठा सिद्ध कर दें। हर बाप अपने बेटे के सामने सर्वज्ञ है। हर मां अपनी बेटी के सामने सर्वज्ञ है। हर स् कूल का शिक्षक सर्वज्ञ होने का दावा करता है। और यह सर्वज्ञता का दावा दो तरह से सिद्ध हो सकता है एक तो यह कि यह आदमी सर्वज्ञ हो, जबकि सर्वज्ञ दुनिया में ना कभी हुआ है और ना कभी हो सकता है। और दूसरा रास्ता यह है सर्वज्ञ सि द्ध होने का कि दूसरा सामने वाला आदमी संदेह करने वाला ना हो। तो फिर हर अ दमी सर्वज्ञ है। तो दुनिया में हमने यह तरकीब जाहिर की है शिक्षकों ने, मां-बाप ने , समाज के व्यवस्थापकों ने कि बच्चे संदेह ना करें। इसलिए बचपन से ही उनको वि श्वास करने का जहर पिलाया जाता है। हर चीज में विश्वास करो। क्यों विश्वास करो? क्योंकि पिता कहते हैं इसलिए विश्व स करो, क्यों विश्वास करो क्योंकि गीता में लिखा है इसलिए विश्वास करो। कोई । पता ने, या किसी कृष्ण ने, या किसी क्राइस्ट ने, या किसी महावीर ने ठेका लिया हु आ है सव आदमियों के मन का और बुद्धि का। क्यों किसी का विश्वास करो। यह जो एथोरिटियन है, यह जो आज्ञता सिखाई जाती है यह विज्ञान जीरो की है विज्ञान कहता है संदेह करो सब पर संदेह करो और तब तक संदेह करो जब तक तुम खो ज कर पहुंच ना जाओ किसी बात को तुम ना जान लो। तो ठीक से डाऊट करना । वज्ञान की प्रक्रिया है। लेकिन हिंदुस्तान में कोई बेटा संदेह करता ही नहीं। वह विज्ञान की शिक्षा लेकर लौ ट . . . आ जाता है। लेकिन उसके मन में संदेह का जन्म नहीं होता। उसका सारा मन इस बात से ही भरा रहता है। वह वहीं का वहीं आदमी है। उसमें कोई फर्क न हीं पड़ा हुआ है। शिक्षा का कसूर नहीं है यह, यह जो हमारे मन की व्यवस्था है मौ लक व्यवस्था वह गलत है। अगर हमें इस देश को वैज्ञानिक बनाना हो तो जिस तर ह हमने अब तक विश्वास सीखाया है बिलीव सीखाई है उसी तरह हमें अब अपने वे टों को संदेह सिखाना पड़ेगा। हमें उन बच्चों को सिखाना पड़ेगा कि वह पूछे, जिज्ञासा करें। और जो हम नहीं जा नते हैं कहना पड़ेगा अपने बच्चों से कि हम नहीं जानते हैं हमें खुद ही पता नहीं है। तुम जिंदगी में खोजना हो सकता है तुम्हें पता हो जाए। और मैं आपसे कहता हूं Page 26 of 150 http://www.oshoworld.com

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