Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 27
________________ भारत की खोज जो बात झूठे ज्ञान का दावा नहीं करता अपने बेटे के सामने बेटा जिंदगी भर उसका अनुग्रहित रहेगा। और उस पिता के प्रति उसका सम्मान सदा कायम रहेगा। क्योंकि आज नहीं कल बेटा खुद ही पता लगा लेगा कि बाप कुछ भी नहीं जानता था कन बचपन से दावे करता रहा कि मैं सब जानता हूं। और जिस दिन उसे पता चल जाएगा उस दिन बात सदा के लिए झूठा हो जाएगा । यह जो दुनिया में मां और बाप का आदर खत्म हो गया है उसका कुल एकमात्र का रण है कि बच्चे जब शिक्षित होकर बड़े होकर देखते हैं तो पाते हैं कि उनके मां-बा प उतने ही अज्ञान थे जितना कोई और। लेकिन बचपन से उन्हें धोखा दिया गया है। और हर ऐसी बात को मां-बाप ने जानने का दावा किया जिसे वह बिलकुल नहीं जानते थे। तब श्रद्धा विलीन हो जाती है। और एक अश्रद्धा और एक अपमान पैदा हो जाता है दुनिया में मां-बाप का अपमान जारी रहेगा जब तक मां-बाप बच्चों को धोखा देते हैं। और सबसे बड़ा धोखा ज्ञान का धोखा है। किसी आदमी को यह हक नहीं, अगर मुझे पता नहीं है ईश्वर का तो मुझे भूलकर कभी किसी से नहीं कहना चाहिए कि ईश्वर है। मुझे मालूम नहीं है कुछ लोग कहते है 'है' कुछ लोग कहते हैं 'नहीं है' मैं खुद कुछ भी नहीं जानता मुझे कुछ भी पता नहीं । समझदार बाप एगनोस्टिक होगा। समझदार शिक्षक भी एगनोस्टिक होगा, वह अज्ञेयव ादी होगा, वह कहेगा जो मुझे पता नहीं है वह पता नहीं है वह विनम्र होगा। और यह विनम्रता जिज्ञासा पैदा करेगी और संदेह पैदा करेगी बच्चे सोचेंगे जरूरी नहीं कि सोचने से वह सब कुछ जा जान लेंगे। लेकिन जितना वह जान लेंगे वह वैज्ञानिक ह गा । जितना वह नहीं जानेंगे वह कभी दावा नहीं करेंगे कि हम जानते हैं वह जानने की चेष्ठा करेंगे वह नहीं जान सकेंगे उनके बेटे जानेंगे, उनके बेटे नहीं तो उनके बे टे नहीं तो उनके बेटे जानेंगे। आगे जानने की खोज जारी रहेगी। कोई आदमी दावा कर भी नहीं सकता कि वह सब जानता है। और जिन लोगों ने दावे किए हैं इस ज मीन पर उनसे ज्यादा खतरनाक आदमी नहीं हुए । जिन्होंने दावा किया है हम सब जानते हैं। क्योंकि उन्होंने ज्ञान की यात्रा की हत्या कर दी, छुरा भौंक दिया ज्ञान की पीठ में उसके बाद फिर ज्ञान का बढ़ना मुश्किल हो गया। हमें मन के आधार बदलने पड़ेंगे इसमें शिक्षा का सवाल नहीं है बहुत । बच पन से ही पहले दिन से ही संदेह का बीजारोपण होना चाहिए। और स्कूल में भी संदे ह का बीजारोपण को सहारा मिलना चाहिए । शिक्षक भी सहारा नहीं देता । युनिवर्सि टी के प्रोफेसर भी सहारा नहीं देते। दूसरों की तो हम बात छोड़ दें जो लोग तर्क श शास्त्र पढ़ाते हैं वह शिक्षक भी संदेह नहीं सिखाते। वह शिक्षक भी विश्वास करना सि खाते हैं। 'मैं दु मैं खुद एक युनिवर्सिटी में तर्क शास्त्र पढ़ता था । जो शिक्षक मुझे तर्क शास्त्र सिखाते थे वह भी मुझसे यह कहते थे कि हम कहते हैं इसलिए मान लो । मैंने कहा, निया में सब की मान लूंगा। लेकिन राज्य के शिक्षक की तो नहीं मान सकता। तो मुझे तो तर्क से सिद्ध करना पढ़ेगा, क्योंकि मैं तर्क से सीखने आया हूं।' आठ महीने Page 27 of 150 http://www.oshoworld.com

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