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भारत की खोज
वज्ञान एक मथडलौजी है. विज्ञान एक विधि है अगर बाहर की तरफ लगाओ तो पद र्थ के राजों को वह जान लेती है और अगर भीतर की तरफ लगाओ तो परमात्मा के राजों को वह जान लेती है। बाहर से भीतर की तरफ भागना नहीं है, बाहर से भीतर की तरफ विकसित होना है इन दोनों बातों के भेद को ठीक से समझ लेना चाहिए। वाहर से भीतर की तरफ विकसित होना है, वाहर से भीतर की तरफ भाग ना नहीं है। पद्वार्थ से परमात्मा की तरफ भागना नहीं है, पद्वार्थ से परमात्मा की तर फ विकसित होना है क्योंकि पद्वार्थ और परमात्मा एक ही चीज के दो झोर हैं, दो चीजें नहीं। आत्मा और शरीर एक ही संस्था के दो हिस्से है दो चीजें नहीं, दो पहलू हैं दो चीजें नहीं। बाहर का जीवन और भीतर का जीवन एक ही जीवन के दो चह रे हैं दो जीवन नहीं। और समस्याओं को जो हल करना चाहता हैं उसे समस्याओं क ो स्वीकृति देनी होगी और समस्याओं की स्वीकृति से समस्याओं को हल करने के मा र्ग खोजने होगे। यह पहली बात आप से कहता हूं। समस्याएं सत्य हैं तब हम सत्य समाधान खोज स कते हैं और जो प्रतिभा समस्याओं के सत्य को स्वीकार कर लेती है। वह बड़ी चिनौ ती स्वीकार करती है बड़ा चैलेंज क्योंकि फिर यह ध्यान रहे जिस समस्या को हम स् वीकार करते हैं। जब तक वह हल न हो जाए तब तक हमारे प्राणों को चयन नहीं मिलती। जो समस्या स्वीकृत हो जाएगी वह चैलेंज वन जाती है प्राणों के लिए की उसे हल करो। और अगर हमने समस्या को कह दिया की वह झूठ हैं चिनौती खत्म
हो गई। फिर हल करने का प्रश्न ही नहीं उठता। जितनी ज्यादा समस्याएं हम स्वी कार करेंगे। उतनी ही ज्यादा हमारी प्रतिभा विकसित होगी, उन्हें हल करने में, और
यह भी ध्यान रहे प्रतिभा हल करने में ही विकसित होती हैं। सार्मथ झूझने से ही ि वकसित होती हैं। चिनौती से सोई हुई शक्तियां जागती हैं। जितनी बड़ी चिनौती उ तनी ही बड़ी भीतर की शक्तियां जागृति होती हैं। भारत ने बाहर की चिनौती इंकार करके भीतर की प्रतिभा को सो जाने का मोका ि दया। भारत के प्राण सो गए। इसलिए बाहर की सारी समस्याएं सत्य हैं यथार्थ हैं य ह मैं नहीं कह रहा हूं की वह ही यथार्थ हैं और यथार्थ भी है। जो उनसे गहरा और
ऊपर भी है। लेकिन जो इसी के यथार्थ को नहीं जान पाता वह उस यथार्थ को के से जान पाऐगा। इसलिए भागना नहीं है, जीवन की एक-एक समस्या को हल करन । हैं और जितनी समस्या हल हो जाती हैं। हमारी प्रतिभा उतनी सरिष्ट और ऊपर उठ जाती है। हम और बड़ी समस्याओं को हल करने के योग बन जाते हैं। लेकिन अभी उलटी हालत हैं हम से छोटी समस्या हल नहीं होती और बड़ी समस्या ओंको हल करने का हम विचार करते हैं। साईकील का पैचर भी जोड़ नहीं सकते और परमात्मा की बातें करते हैं। अजीब सी स्थिति हैं और यह धोखा भी हमें नहीं दिखाई पड़ता की हम एक सेलफ डिशेफ्सन में हैं, एक आत्मपरवंचना में पड़े हुए हैं।
इसलिए पहला सूत्र जीवन यथार्थ हैं, शरीर यथार्थ हैं, पद्वार्थ हैं, जीवन की सारी स मस्याए यथार्थ हैं और जो कहते हैं की जीवन माया हैं वह गलत कहते हैं। क्योंकि
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