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भट्टाकलंकदेव की कथा
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की बातें सुनकर रानीको बड़ा खेद हुआ। पर वह कर ही क्या सकती थी । उस समय कौन उसकी आशा पूरीकर सकता था । वह उसी समय जिनमन्दिर गई और वहाँ मुनियोंको नमस्कार कर उनसे बोली- प्रभो, बौद्धगुरुने मेरा रथयात्रोत्सव रुकवा दिया है । वह कहता है कि पहले मुझसे शास्त्रार्थ करके विजय प्राप्त कर लो, फिर रथोत्सव करना । बिना ऐसा किये उत्सव न हो सकेगा । इसलिये मैं आपके पास आई हूँ । बतलाइए जैन दर्शनका अच्छा विद्वान् कौन है, जो बौद्धगुरुको जीतकर मेरी इच्छा पूरी करे ? सुनकर मुनि बोले- इधर आसपास तो ऐसा विद्वान् नहीं दिखता जो बौद्धगुरुका सामना कर सके । हाँ मान्यखेट नगर में ऐसे विद्वान् अवश्य हैं। उनके बुलवानेका आप प्रयत्न करें तो सफलता प्राप्त हो सकती है । रानी ने कहा - वाह, आपने बहुत ठीक कहा, सर्प तो शिरके पास फुंकार कर रहा है और कहते हैं कि गारुड़ी दूर है | भला, इससे क्या सिद्धि हो सकती है ? अस्तु | जान पड़ा कि आप लोग इस विपत्तिका सद्यः प्रतिकार नहीं कर सकते । दैवको जिनधर्मका पतन कराना ही इष्ट मालूम देता है । जब मेरे पवित्र धर्मकी दुर्दशा होगी तब में ही जीकर क्या करूँगी ? यह कहकर महारानी राजमहलसे अपना सम्बन्ध छोड़कर जिनमन्दिर गई और उसने यह दृढ़ प्रतिज्ञा को - " जब संघ श्रीका मिथ्याभिमान चूर्ण होकर मेरा रथोत्सव बड़े ठाठबाट के साथ निकलेगा और जिनधर्मकी खूब प्रभावना होगी, तब ही मैं भोजन करूँगी, नहीं तो वैसे ही निराहार रहकर मर मिदूंगी; पर अपनी आँखों से पवित्र जैनशासनकी दुर्दशा कभी नहीं देखूंगी।" ऐसा हृदय में निश्चयकर मदनसुन्दरी जिन भगवान् के सन्मुख कायोत्सर्ग धारणकर पंचनमस्कार मंत्रकी आराधना करने लगी । उस समय उसकी ध्यान निश्चल अवस्था बड़ी ही मनोहर दीख पड़ती थी । मानों सुमेरुगिरिकी श्रेष्ठ निश्चल चूलिका हो ।
"भव्यजीवोंको जिनभक्तिका फल अवश्य मिलता है ।" इस नीतिके अनुसार महारानी भी उससे वंचित नहीं रही । महारानीके निश्चय ध्यानके प्रभावसे पद्मावतीका आसन कंपित हुआ । वह आधीरात के समय आई और महारानीसे बोली देवी, जबकि तुम्हारे हृदयमें जिनभगवान्के चरण कमल शोभित हैं, जब तुम्हें चिन्ता करनेकी कोई आवश्यकता नहीं । उनके प्रसादसे तुम्हारा मनोरथ नियमसे पूर्ण होगा । सुनो, कल प्रात:काल ही अकलंकदेव इधर आवेंगे, वे जैनधर्मके बड़े भारी विद्वान् हैं । वे ही संघ श्रीका दर्प चूर्णकर जिनधर्मकी खूब प्रभावना करेंगे और तुम्हारा रथोत्सवका कार्य निर्विघ्न समाप्त करेंगे । उन्हें अपने मनोरथोंके पूर्ण
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