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अमरदीप
'अग्नि, सूर्य, चन्द्र, समुद्र, नदी, तथा इन्द्रध्वज, सैन्य, और नया मेघ, (इस प्रकार संसार के प्रत्येक पदार्थ की अनित्यता) का चिन्तन करो' ॥५॥
___'यौवन, रूप-सम्पदा सौभाग्थ, धन-सम्पत्ति प्राणियों का जीवन पानी के बुलबुले के समान (क्षणविध्वंसी) है' ।।६।।
(इस संसार में) स्वर्गीय समृद्धि से सम्पन्न देवेन्द्र, प्रख्यात दानवेन्द्र और पराक्रमी नरेन्द्र विवश होकर एक दिन समाप्त हो गए' ॥७॥
संसार के प्रत्येक, पदार्थ, यहाँ तक कि स्वर्ग में रहने वाले देवेन्द्र तक भी अनित्य हैं, नाशवान् हैं, क्षणभंगुर हैं। अतः संसार के निर्जीव सजीव सभी पदार्थ, रूप, यौवन, धन, जीवन आदि अनित्य हैं, क्षणभंगुर हैं। साधक को चाहिए कि संसार के सभी पदार्थो की अंनित्यता पर चिन्तन करके उनको प्राप्त करने तथा उन पर आसक्ति रखने का प्रयत्न न करे तभी संसारपरम्परा की जड़ कटेगी।
__ संसार के सभी पदार्थों पर अनित्यता अपना डेरा डालते हुए है, इस तथ्य को विशेष रूप से स्पष्ट करने के लिए अर्हतर्षि हरिगिरि कहते हैं
सव्वत्थ णिरणुक्कोसा णिबिसेस-पहारिणो । सुत्त-मत्त-पमत्ताणं एका जगति अनिवता ॥८॥ . देविदा दाणविदा य गरिदा जे य विस्सुता। पुण्णकम्मोदयब्भूत पोति पावंति पोवरं ।।६।। आऊं धणं , बलं रूवं, सोभागं सरलत्तणं । णिरामयं च कंतं च, विस्सते विविहं जगे ॥१०॥ सदेवोरग-गंधब्वे सतिरिक्खे समाणुसे । णिब्भया णिव्विसेसा य, जगे वत्तेय अणिच्चता ॥११॥ दाण-माणोवयारेहि. साम-भेयक्कियाहि य । ण सक्का संणिवारेउ तेलोक्केणाविऽणिच्चता ।।१२।। उच्चं वा जति वा णीयं, देहिणं वा णमस्सितं । जागरंतं पमत्त वा, सम्वत्था णाभिलुप्पति ॥१३॥ 'एवमेतं करिस्सामि, ततो एवं भविस्सतो' । संकप्पो देहिणं जो य, णं तं कालो पडिच्छती ।।१४।। जा जया सहजा जा वा, सव्वत्येवाऽणुगामिणी । छाय व्व देहिणो गढा, सचमण्णेतिऽणिच्चता ।।१५।। कम्मभावेऽणुवतंती, दीसंति य तधा-तधा । देहिणं पति चंव, लोणा वतेय अणिच्चता ।।१६।।