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उपसंहार
सुज्ञ श्रोताओ !
मैं पिछले दिनों से आपको ऋषिभाषित सूत्र पर प्रवचन सुनाता रहा हूँ। आज मैंने आप लोगों को इस सूत्र के अन्तिम अध्ययन पर प्रवचन सुनाया है । उसमें अर्हतर्षि वैश्रमण ने साधक को अपनी शक्ति का संयम में उपयोग करने की प्रेरणा दी है । इस ४५ वें अध्ययन के साथ ही ऋषिभाषित सूत्र समाप्त हो गया है ।
अब मैं आपको इस सूत्र के सम्बन्ध में कुछ विशेष जानकारी देना चाहता हूँ । इसमें पहली बात तो यह है कि ये अर्हतषि किस तीर्थंकर के शासनकाल में हुए हैं । दूसरी यह कि मूल ऋषिभाषित के अध्ययनों का नामकरण किस शैली के आधार पर हुआ है। तीसरी यह कि इन अर्हतषियों की विषय प्रतिपादन शैली क्या है और उसमें कैसे अनुभूत रहस्य भरे हैं ।
अर्हतषियों के नाम और समय
हाँ तो अब पहली बात लीजिए
बन्धुओ ! इन अर्हतषियों के नाम और वे किस तीर्थंकर के शासनकाल में हुए, इस सम्बन्ध में निम्न संग्रहिणी गाथाएँ प्राप्त होती हैं
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पत्तेयबुद्धमिसिणो बीसं तित्थे पासस्स य पण्णरस वीरस्स
अट्ठमिस्स । विलीणमोहस्स ||
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अर्थात्-बीस अर्हत प्रभु अरिष्टनेमि के शासन काल में हुए, पन्द्रह भगवान पार्श्व के काल में और शेष दस भगवान महावीर के समय में
हुए ।
इसका अभिप्राय यह है कि इन अर्हतषियों का सम्पूर्ण काल अन्तिम तीन तीर्थंकरों तक विस्तृत है ।
एक बात यहाँ विशेष कहने की है कि भगवान अरिष्टनेमि का युग ही कर्मयोगी श्रीकृष्ण का युग है । उस समय से भारत का क्रमबद्ध इतिहास प्राप्त होता है, तथा भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवहमान धार्मिक, सामाजिक,