Book Title: Amardeep Part 02
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 324
________________ २९८ अमरदीप है और क्षुधापूर्ति होने के बाद स्वयं उससे मुंह मोड़ लेता है। इसी प्रकार साधक देह की रक्षा करता है, पर उसका उद्देश्य देह की रक्षा नहीं, अपितु आत्म-रक्षा है । जब तक देह द्वारा देही को पोषण मिलता है, तब तक वह देह की रक्षा करता है, जब लक्ष्य पर पहुंच जाता है, तब देह को छोड़ देता है। इसीलिए उत्तराध्ययन सूत्र (२६/३३) में कहा गया है कि साधक ६ कारणों से आहार करता है-क्षुधा की शान्ति, रत्माधिकों की सेवा, ईर्यासमिति, संयम यात्रा का निर्वाह, प्राणरक्षा और धर्म चिन्तन । निष्कर्ष यह है कि उसका भोजन केवल शरीर के पोषण के लिए नहीं अपितु संयम की रक्षा आदि के रूप में आत्मविकास के लिए होता है। इस प्रकार साधक द्वारा किया जाने वाला भोजन सर्वज्ञों द्वारा अनुमत है। अपनी शक्ति का संयम में उपयोग करे अब अर्हतर्षि भोजन द्वारा प्राप्त होने वाली शक्ति का उपयोग दूसरों को दबाने-सताने में नहीं, अपितु ज्ञान-दर्शन-चारित्र पालन में करने का निर्देश करते हुए कहते हैं जातं जातं तु वीरियं सम्मं जुज्जेज्ज संजमे । पुप्फादीहि पुप्फाणं रक्खंतो आदिकारणं ॥५३॥ साधक अपने भीतर प्रकट होने वाली शक्ति का संयम में सम्यक प्रकार से उपयोग करे । पुष्पों का उपयोग करने वाला पुष्पों के आदिकारण बीज की रक्षा करता है। बन्धुओ ! ___ साधक सात्विक उपायों से शक्ति प्राप्त करे, किन्तु उस शक्ति का विवेकपूर्वक उपयोग करे। संयम में किया गया पुरुषार्थ आत्मविकास में सहायक होता है। तभी आध्यात्म रस का आनन्द प्राप्त होगा। आत्मिक शक्ति प्राप्त होगी। परन्तु यदि शक्ति का गलत उपयोग किया तो वह देवत्व के बदले राक्षसत्व की ओर ले जायगी। राम ने शक्ति का सही उपयोग करके देवत्व पाया था, और रावण ने उसका गलत उपयोग करके राक्षसत्व पाया। शक्ति दोनों को प्राप्त हुई थी। अतः शक्ति का उपयोग सुन्दर ढंग से करने वाला जीवन का वास्तविक आत्मनिष्ठ सुख-आनन्द प्राप्त करता है । आप भी अपनी शक्ति का सदुपयोग करें, तभी जीवन सार्थक होगा। ... 00

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