Book Title: Amardeep Part 02
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 327
________________ (२७) वारत्त (२९) वर्द्धमान (३१) पार्श्व (३३) अरुण (३५) अद्दालक (३७) सिरिगिरि (३६) संजय ( ४१ ) ) इंद्रनाग (४३) यम (२८) आद्रक (३०) वायु (३२) पिंग (३४) ऋषिगिरि (३६) वित्त ( तारायण ) (३८) सातिपुत्र (४०) दीवायन (४२) सोम (४४) वरुण और उपसंहार (४५) वैश्रमण । हैं । ३०१ यह ४५ अर्हत बन्धुओ ! इन नामों में कुछ नाम ऐसे हैं जो अन्य परम्पराओं में अधिक प्रचलित थे, जैसे - सातिपुत्र, बौद्ध परम्परा में प्रचलित नाम है, इनके नाम के साथ बुद्ध विशेषण भी लगा हुआ है, लेकिन यहाँ बुद्ध का अभिप्राय जागृत - ज्ञानप्राप्त आत्मा से है बौद्ध परम्परा या धर्म से नहीं है । इसके अतिरिक्त सोम, यम, वरुण, अरुण, इन्द्रनाग आदि शब्द वैदिक परम्परा में अधिक प्रचलित हैं । लेकिन इन नामों के आधार पर इन्हें अन्य परम्पराओं का समझना भूल होगी । इनके द्वारा कथित सिद्धान्तों से स्पष्ट है कि ये सभी अर्हत् परम्परा के ऋषि थे । साथ ही यह बात भी स्पष्ट है कि ये सभी जैनधर्म, आचार-विचार में बहुत गहरे उतरे हुए थे 1 तत्त्वज्ञान और अध्ययनों का नामकरण बन्धुओ ! किसी भी ग्रन्थ अथवा उसके अध्यायों के नामकरण की प्रमुख दो शैलियाँ हैं- ( १ ) विषय पर आधारित और (२) वक्ता या रचयिता अथवा प्रमुख पात्र पर आधारित । इसके अतिरिक्त कभी-कभी तीसरी शैली का प्रयोग भी कर लिया जाता है, वह है- गाथा अथवा श्लोक के प्रथम शब्द के आधार पर । जैन ग्रन्थों में, नामकरण की ये तीनों शैलियां प्रचलित थीं । उदाहरणार्थ – उत्तराध्ययन सूत्र का विनयश्रु त अध्ययन', आचारांग का 'शस्त्र परिज्ञा अध्ययन' आदि विषय पर ही आधारित नाम हैं । दूसरी शैली का प्रयोग उत्तराध्ययन सूत्र के 'कपिलीय', 'संजयीय' आदि अध्ययनों के नामकरण में हुआ है ।

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