Book Title: Amardeep Part 02
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 329
________________ (१६) विसय उपसंहार ३०३ किसी बाले य पंडित सहणा तह कुप्पणा य बोद्धव्वा । तप्पत उदय य सुव्वा पावे तह इच्छणिच्छा य ॥४॥ आजीवओ य अप्पजिण य एसितव्व बहुवन्तु । लाभे दो ठाणेहि य अप्प पापाण हिंसायु ॥५॥ . - इसिभासित अत्थाहिगार संगहिणी समत्ता अर्थात्-(१) सोयव्वं (२) जस्स (३) अभिलेव (४) आदाणरक्खि (५) माण (६) तम (७) सव्वं (८) आराए (8) जाव (१०) सद्धय (११) णिब्वेय. (१२) लोगेसणा । (१३) किमत्थं (१४) जुत्तै (१५) साता (१७) विज्जा (१८) वज्ज (१६) आरिय (२०) उक्कल (२१) णाहंति जाणामि (२२) पडिसाडी (२३) ठवण दुवेमरणे (२४) सव्वं (२५) वंस (२६) धम्म (२७) साहु (२८) सोत (२६) सवंति (३०) अहसव्वतो (३१) समेलोए । (३२) किसी (३३) बाले य पंडित (३४) सहणा (३५) कुप्पणा (३६) तप्पत (३७) उदय (३८) सुव्वा (३६) पाव (४०) इच्छमणिच्छ (४१) आजीवओ (४२) अप्पजिणय (४३) लाभे (४४) दो ठाणेहिं और (४५) अप्पं पापाण हिंसायु।। यह ऋषिभाषित सूत्र के ४५ अध्ययनों के नाम हैं । सज्जनो ! जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हं कि जनता उसी कृति का नामकरण करती है, जो लोकप्रिय हो । इस सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि ऋषिभाषित सूत्र के ये अध्ययन उस युग में अधिक लोकप्रिय रहे होंगे।

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