Book Title: Amardeep Part 02
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 319
________________ अन्तदृष्टि साधक की वृत्ति प्रवृत्ति २३ पुण्यराशि से देदीप्यमान जिनेन्द्रदेव की आज्ञा की अवहेलना इस दुःखपूर्ण संसार में सबके लिए दुःखप्रद होगी । त्रैलोक्य के सारभूत महाप्रज्ञाशील वीतराग पुरुषों ने जो कुछ कहा है वह साधक के जीवन के लिए सम्यक् (सुखद) है, उसका काया से सम्यक् स्पर्श करके फिर उससे पीछे न हटे ।। ३७-३८।। राजचिह्न बांधकर रथ पर चढ़ा हुआ स्थिरायुध योद्धा सिंहनाद करके यदि रणभूमि से पलायन करता है, तो वह उसके लिए शोभास्पद नहीं है । अगन्धन कुल में पैदा हुआ सर्प जहर को फैंककर पुनः उसे ग्रहण करता है, तो वह हीनता (लघुता) को प्राप्त करता है ॥ ३६-४०॥ जैसे रुक्मिकुल में उत्पन्न सर्प सुन्दर भोजन करके, उसे वमन कर देता है और पुनः उसे खाता है तो धिक्कार का पात्र होता है, इसी प्रकार जिनेन्द्रदेव की आज्ञा यथावत् पालन करने से आत्मा पर लगे हुए शल्यों का उद्धार (निकालना) होता है । संसार की आग से निकल कर वह साधक सुखी होता हैं और वास्तव में वही सच्चा सुख है ॥४१-४२॥ वीतराग की आज्ञा किसी प्राणिविशेष पर नहीं, किन्तु समस्त प्राणियों पर अनुकम्पा रखने की है । उसमें किसी भी प्राणी के प्रति पक्षपात या भेदभाव का नाम नहीं है । वीतराग की समस्त विधि - निषेधात्मक आज्ञाएं साधक के लिए हितकर हैं । उन आज्ञाओं के पीछे उनकी कोई व्यक्तिगत आकांक्षाएँ नहीं हैं, क्योंकि वे स्वयं मोहातीत हैं । साथ ही वे इन्द्रियविजेता हैं, उन्होंने स्वयं उन आज्ञाओं का अनुपालन किया है । उसके बाद ही साधक के लिए विधान किया है । वे अनन्त प्रज्ञाशील हैं । केवलज्ञान के प्रकाश पु ंज से उन्होंने साधकों को ज्ञान-किरणें दी हैं । उनकी आज्ञाओं को ठुकरा कर हम उन्हें तो कष्ट नहीं दे सकते, क्योंकि वे स्वयं वीतराग हैं, परन्तु हम आज्ञाओं को ठुकराकर अपने आपको दुःख और बंधनों की शृंखला बाँध देते हैं । जिस प्रकार तेजस्वी राजा के आदेश का पालन न करने पर व्यक्ति स्वयं को कठोरतम दण्ड की विडम्बना में डाल लेता है, वैद्य के पथ्यापथ्य का आदेश न मानकर रोगी अपने रोग को दुगुना कर लेता है, इसी प्रकार निःस्वार्थ, निःस्पृह जगद्गुरु वीतराग के आदेश की अवहेलना करके व्यक्ति उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, किन्तु अपने जीवन की सीधी राह में कांटे बिखेर लेता है । मोहविजय और कषायविजय के पवित्र आदेश का पालन न करके

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