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ζζ अमरदीप
'अध्रुव (अस्थायी ) राज्य के आश्रित रहा व्यक्ति विवश होकर एक दिन अवश्य ही समाप्त हो जाता है । फललिप्सु मानव यदि कटे हुए वृक्ष पर चढ़ता है, तो परिणाम मे दुःख ही पाता है' ||३२||
' मोह का उदय होने पर जीव व्यर्थ ही दूसरे मोहग्रस्त होते हुए व्यक्ति पर खीजता है, उससे द्वेष करता है । जैसे कटे कान वाला व्यक्ति नकटे ( कटी नाक वाले) को देखकर हंसता है' ||३३||
' जिसके मोह का उदय हुआ है, वह मन्दमोही व्यक्ति की हँसी उड़ाता है, जैसे सोने के आभूषण पहनने वाला लाख के आभूषण पहनने वाले का मजाक करता है' ॥३४॥
'मोहमुग्ध जीव मोहग्रस्त आत्माओं में रहकर आमोद-प्रमोद करता है, जिस प्रकार गृह मोहित व्यक्ति घर में ही मुग्ध रहता है' ||३५||
गाथाएँ मोह के विविध रंग बिरंगे परिणामों को बताने वाली हैं । मोहवश व्यक्ति भयंकर से भयंकर पाप कर्मों को कर बैठता है । मोह से ग्रस्त व्यक्ति क्या-क्या नहीं करता ? वह अपने परिवार, जाति, सम्प्रदाय आदि के संकुचित प्रेम के लिए दूसरे के हरे-भरे जीवन को उजाड़ देता है । पुत्र प्राप्ति के लिए किसी के नन्हे-मुन्ने को मार डालता है, दूसरे के मुँह का कर छीनकर या दूसरों का शोषण एवं उत्पीड़न करके अपने स्त्री- पुत्र को पालता- पोसता है । अपने परिवार के क्षणिक सुख के लिए दूसरों की जिंदगी बर्बाद कर डालता है । स्पष्ट है कि जिस प्रकार मछली आटे की गोली खाने में वर्तमान सुख को ही देखती है, उसके पीछे मृत्यु का भयंकर दुःख उसे नहीं दिखाई देता, वैसे ही मोहमूढ़ व्यक्ति को वर्तमान सुख ही दिखता है उसके पीछे छिपा हुआ भयंकर जन्म-मरण का दुःख नहीं दिखता । वह बल, मोह या घमण्ड के आवेश में आकर अपने मे निर्बल मनुष्यों या प्राणियों को सताता, मारता, या शिकार करता है । वह अपने बल का उपयोग शक्तिहीनों को पीड़ित एवं पददलित करने में करता है। सभी क्षेत्रों में आज यह 'मत्स्य- गलागल न्याय' चरितार्थ हो रहा है । जसे बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है, उसी प्रकार कई मोहमूढ़ लोग आसुरी शक्ति के धनी बनकर दूसरों को कुचल और दबाकर ही अपने अहंकार की पूर्ति करते हैं । शक्तिशाली राष्ट्र निर्बल राष्ट्रों को दबोचता है, उसे अपने शोषण ET शिकार बनाता है ।
परन्तु याद रखिये, मोहरूपी पहलवान से प्रेरित जीव ऐसा करके केवल वर्तमान सुख का आस्वादन करने में लुब्ध है। ऐसा जीव तीव्र मोह कर्म का बन्ध करता है । उस समय वह भावी दुःखद परिणामों को नहीं सोच