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कामविजय : क्यों और कैसे
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तेज समाप्त हो जाता है, तब मानव के जीवन का रस भी उसी तरह समाप्त हो जाता है, जिस प्रकार गन्ने में से रस निकल जाने के बाद वह कूड़े का ढर मात्र रह जाता है।
__जो व्यक्ति बाहर से निष्काम प्रतीत होते हैं, किन्तु जिनके मन में कामवासना की लहरें उठती हैं, वे वर्तमान और भविष्य में संसार में सबसे अधिक दुःखी जीव हैं।
यह निश्चित समझिए कि जब तक कामवासना की रस्सी जली नहीं है, तब भवपरम्परा समाप्त नहीं होती। कामासक्ति संसार की वह बेल है, जिस पर जरा और मृत्यु के विषफल लगा करते हैं।
__ कामासक्त पुरुष सम्पूर्ण जगत् को काम के आगे तुच्छ समझता है। वह तुच्छ कामसुख को पाने के लिए अपने साम्राज्य तक को छोड़ने को तैयार हो जाता है। .
_ 'कीलर' नाम की सुन्दरी के रूपपाश में फंसने के कारण इंग्लैण्ड के कामासक्त विदेशमन्त्री 'प्रोफ्युमो' को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। इनकी काम-लीला की चर्चाएँ अखबारों में प्रकाशित हो गई थी, जिसके कारण बहुत बदनामी भी हुई।
कामवासना से होने वाली इहलौकिक और पारलौकिक हानियों का उल्लेख करते हुए अर्हतर्षि आर्द्र क कहते हैं -
सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोपमा ।
बहु-साधारणा कामा, कामा संसारवड्ढणा ॥४॥ 'काम शूल की तरह चूभनेवाली वस्तु है। काम विष की तरह मारक है । काम आशीविष सर्प के समान भस्म करने वाला भयंकर पदार्थ है। काम अत्यन्त तुच्छ (साधारण) वस्तु है और काम संसार को बढ़ाने वाला
है ॥४॥
वस्तुत: काम का बाहरी रूप अत्यन्त मोहक है, साधारण अज्ञमनुष्य काम के परिणामों से अनभिज्ञ रहकर उसे अपना लेता है, वह अपने तीखे बाणों से उसे घायल कर देता है। थेरी गाथा में बताया है
सत्ति-सूलूपमा-कामा' काम विषबुझे बाणों के समान तथा तीखे भाले के समान पीड़ादायक है । काम अपने आप में एक प्रकार का तीव्र विष है, जो एक जन्म तक ही नहीं, अनेक जन्मों तक मारता है । मोहक और सुरूप दिखाई देने वाले काम