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अज्ञ का विरोध : प्राज्ञ का विनोद १६७
विरोध का तृतीय प्रकार : सहनशक्ति बढ़ाएं यदि इससे भी आगे बढ़कर अज्ञानी लोग लाठियाँ आदि से मारनेपीटने पर उतारू हो जाएँ तो विचारक साधक क्या करे ? इसके लिए ऋषिगिरि अर्हतषि का मार्गदर्शन इस प्रकार है
(३) बाले य पंडितं दंडेण वा लट्ठिणा वा लेट्टुणा वा मुट्ठिणा वा कवालेण वा अभिहणेज्जा एवं चेव णवरं अण्णतरेणं सत्थजातेणं अण्णयरं सरीरजायं अच्छिदइ वा, विच्छिदइ वा मुक्खसभावा हि बाला, ण किंचि बालहितो ण विज्जति, तं पंडिते सम्मं सहेज्जा, खमेज्जा, तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा ।
अर्थात् -- यदि अज्ञानी किसी प्रज्ञाशील पण्डित साधक पर डंडे, लाठी ढेले, मुक्के या ठोकर आदि से प्रहार करता है, तब भी पण्डित साधक यह सोचे कि खुशकिस्मती से ये केवल दण्ड आदि से ही प्रहार कर रहे हैं, किन्हीं शस्त्र आदि से तो मेरे शरीर का छेदन-भेदन नहीं करते। वह यही सोचे कि अज्ञानीजन मूर्ख स्वभाव के होते हैं । इन अज्ञानीजनों द्वारा जो न किया जाए, वही थोड़ा है। पंडित साधक उनके प्रहारों को सम्यक् प्रकार से सहे, क्षमाभाव धारण करे, तितिक्षा (धैर्य) पूर्वक सहे और मनःसमाधि न खोते हुए सहन करे ।
to क्रान्ति आगे बढ़ती है और परम्परा की घातक दीवारें ढहने लगती हैं, तब स्थितिस्थापक परम्परा-पुजारी बौखला उठते हैं । वे चिल्लाते हैं, क्योंकि उनकी दुकानदारी और प्रतिष्ठा उठने लगती है । परम्परा की नींव डगमगाती है, तो बड़ी-बड़ी शक्तियाँ भी क्षुब्ध हो उठती हैं और उनके सम्प्रदायवाद की मदिरा पीये हुए मतान्ध अनुगामी साम्प्रदायिकता, कट्टरता और अन्धविश्वास पर जमी हुई गद्दी की रक्षा के लिए लाठियाँ, डंडे आदि लेकर उन विचारक और क्रान्तिकारियों को मारने-पीटने लगते हैं ।
भगवान् महावीर को भी उस समय अनार्य कहे जाने वाले लाढ़ देश में विचरणकरते समय जनता में गहरी जमी हुई नास्तिकता की जड़ें उखाड़ने और देव गुरु-धर्म के प्रति आस्था की जड़ें जमाने के लिए जनता से भारी लोहा लेना पड़ा । आचारांग सूत्र में अनार्य देश में भगवान् के विहार का वर्णन पढ़ते समय रौंगटे खड़े हो जाते हैं । लाठी, डंडा, मुक्के, गाली, निन्दा और तिरस्कार के भयंकर प्रहार भगवान् को उस अनार्य देश में सहने पड़े हैं । अत: विचारक साधक अपने पर प्रहार करने वालों के प्रति मन में ज़रा भी रोष, द्व ेष, कटुता न आने दे, अपनी मानसिक शान्ति भंग न होने दे, न ही उनके समक्ष दीनता-चापलूसी करे। बल्कि यही सोचे कि, ये बेचारे अज्ञानतावश ऐसा कर रहे हैं । इनकी रूढ़ परम्परा का सिंहासन हिलने लगा है,