Book Title: Amardeep Part 02
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 261
________________ आत्मनिष्ठ सुख की साधना के मूलमंत्र अक्षय सुख : यह है या वह ? 'धर्मप्रेमी श्रोताजनो! आज दुनिया जिस सुख के पीछे पागल बनी फिर रही है, वह सुख कौन-सा है ? क्या-"Eat, drink and be merry' खाओ, पीओ और मौज उड़ाओ, यही सुख का सूत्र है ? हम पूछते हैं कि अगर इसे ही सुख कहते हैं तो जिनके यहाँ प्रतिदिन दावतें उड़ती हैं, जिसके भवन आकाश से बातें कर रहे हैं, जिनके पास कार, टी. वी., फ्रीज, आदि एक से एक बढ़कर सुख के साधन हैं, जिनके यहाँ भोग-विलास और सुख-सुविधा की कोई कमी नहीं है, वे भी अपने अंदर दुःख की आहें भरते दिखाई देते हैं, उन्हें भी रातदिन अपनी धन-सम्पत्ति की, जमीन-जायदाद की, सुख-साधनों की सुरक्षा की तथा आयकरआदि कई करों से निपटने की चिन्ता लगी हुई है, सुख से नींद नहीं आती। नींद लाने के लिए गोलियाँ खानी पड़ती हैं, गैस, हार्ट-ट्रबल, ब्लडप्रेशर आदि कई बीमारियाँ लगी हुई हैं। भोजन भी पूरा हजम नहीं होता। क्या यही सुख है, जो बाहर से तो ठाठ-बाट जमाये हुए है और अन्दर दुःख की चिनगारियों को दबाए हुए है ? - वास्तव में यह सुख नहीं, सुखाभास है। इन्द्रियों और मन को जो विषय प्रिय लगता है, उसे ही भोला मन सुख की संज्ञा दे देता है, और उसी काल्पनिक वैषयिक सुख को पाने के लिए बेतहाशा दौड़ता है। किन्तु वहाँ उसे क्षणिक उत्तेजना और हल्की-सी इच्छापूर्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता ! उसके पश्चात् फिर वही चिर अतृप्ति, पुनः इच्छा, फिर दौड़, और संघर्ष, तथा दुःख की अनन्त परम्परा ! दूसरा सुख आत्मनिष्ठ है, जो न तो वस्तुनिष्ठ है और न ही इन्द्रियविषयजन्य है। उस सुख के पीछे न तो दुःख की चिनगारी है और न ही

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