Book Title: Amardeep Part 02
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 308
________________ ४७ . सम्यक निर्णय का सदुपाय धर्मप्रेमी श्रोताजनो! __साधक के सामने कभी-कभो बड़ी पेचीदा समस्या उपस्थित हो जाती है। कभी-कभी उसके समक्ष एक धर्मसंकट पैदा हो जाता है। उस समय वह निर्णय नहीं कर पाता कि किस मार्ग को ग्रहण करे या किसका पक्ष ले? गृहस्थ-जीवन में कभी-कभी किसी व्यक्ति के विषय में आप वास्तविक निर्णय नहीं कर पाते कि यह व्यक्ति ऐसा है या वैसा ? प्रस्तुत चवालीसवें अध्ययन में अर्हतर्षि वरुण सम्यक् निर्णय का सदुपाय बताते हुए कहते हैं दोहि अंगेहि उप्पोलितेहिं आता जस्स ण उप्पीलति । रागंगे य दोसे य से हु सम्म णियच्छति ।। वरुणेण अरहता इसिणा बुइतं । 'राग और द्वष, इन दो अंगों की उत्पीड़ना-संवेदना से जिसकी आत्मा उत्पीड़ित नहीं होती, वही सम्यक् निर्णय कर पाता है, ऐसा वरुण अर्हतर्षि ने कहा। राग और द्वेष, ये दोनों उत्तेजनारूपी विषबेल के कटु फल हैं । द्वेष की संवेदना कटु होने से आत्मा उत्पीड़ित हो ही जाती है, परन्तु राग की संवेदना भी कम कटु नहीं है। जिस वस्तु पर राग होता है, उसके प्रति ऐसा पक्षपात, आसक्तियुक्त मन एवं ममत्वपूर्ण झुकाव हो जाता है कि रागदृष्टि वाला मनुष्य उसके सौ-सौ दोष होने पर भी नहीं देख पाता। राग की अन्धता, द्वेष की अन्धता से तीव्र है। रागी दोष नहीं देखता, तो द्वषो गुण नहीं देखता । अर्थात्-जिसके प्रति मन में द्वष, घृणा और ईर्ष्या की गांठ बंध जाती है, उसके सौ गुणों में से एक भी नहीं दिखाई देता। सास के मन में बह के प्रति जब द्वष की गांठं बँध जाती है तो उसे बहू का एक भी गुण नहीं दिखाई देता । बेटी में कितने ही दोष हों, मां की दृष्टि में एक भी दोष नहीं दिखता।

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