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क्षुद्र से विराट बनो! २७७ . राजकुमार तथा राजा-रानी को पिता-माता मानने लगा। वह लड़का सयाना होकर राजधर्म की शिक्षा-दीक्षा पाने लगा तो राजा यदाकदा उसके समक्ष अपने मनोरथ को दोहराता था । वह भी उनके प्रति कृतज्ञता प्रगट करता था।
राजदरबारियों को पता लगा कि राजा किसी अज्ञातकुल वाले लड़के को लाये हैं, तथा उसी को अपना राज्य और वैभव सौंपेंगे। उन ईर्ष्यालु लोगों को यह बात सहन न हुई । उन्होंने निश्चय किया कि इस लड़के को किसी तरह से राजा से विमुख कर देना चाहिए। एक दिन दरबारी लोग शिष्टमण्डल के रूप में तथाकथित राजकुमार से मिलने आए। राजकुमार को वे एकान्त में ले गए और कहा-'हम आपके हित की कुछ बातें आपसे कहने आए हैं । फिर उन्होंने उससे पूछा-'आप कौन हैं ?' .. 'मैं कौन हूं ? क्या आपको पता नहीं है ? मैं राजकुमार हूं। राजा और रानी मुझे अपना पुत्र मानते हैं ।'–राजकुमार बोला।
____ आगन्तुक-'यह ठीक है कि राजा-रानी आपको अपना पुत्र मानते हैं । परन्तु आप राजा के वास्तविक पुत्र तो नहीं हैं।'
राजकुमार- 'इससे क्या फरक पड़ता है ? मैं राजा का वास्तविक पुत्र हूं या नहीं ? इससे उनके मन में कोई दूसरी बात नहीं है।'
दरबारी-फरक क्यों नहीं पड़ता? आपको यही तो अनुभव नहीं है। राजा जब तक आप पर प्रसन्न हैं, तब तक आपको सब तरह से दुलार मिलेगा, परन्तु जिस दिन राजा आपसे नाराज हो गए, उस दिन आपको यहाँ से निकाल भी सकते हैं। कहावत है
राजा जोगी अगनि जल, इनकी उलटी रीत । __ डरते रहियो परशराम, थोड़ी रखियो प्रीत ॥
यदि राजा आपसे नाराज हो गए और आपको निकाल दिया तो आप कहां जाएँगे ? क्या आपने अपना कोई ठिकाना बना रखा है, जहाँ स्वतंत्र रूप से रह सकें । क्या अपने जीवन निर्वाह के लिए भी आपके पास कुछ पूजी है, जिससे स्वतंत्ररूप से जी सकें। और फिर आपका विवाह नहीं होगा, तो क्या आप आजीवन अकेले ही जिंदगी दुःख से काट सकेंगे?
राजकुमार-'हाँ, आपकी बात में कुछ तथ्य लगता है। जरा स्पष्ट कहिए कि मुझे क्या करना चाहिए ? आप तो मेरे हित की बात कहने आए