Book Title: Amardeep Part 02
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 297
________________ साधना को जीविका का साधन मत बनाओ ! २७१ साधना की तीन श्रेणियाँ हैं— ज्ञान, तप और चारित्र । कुछ साधक साधना में तप को सर्वोपरि स्थान देते हैं । वे अहर्निश तपः साधना में रत रहते हैं | आत्मा क्या है ? उसकी अशुद्ध दशा क्यों हैं ? शुद्धस्थिति कंसे सम्भव है ? इन बातों का ज्ञान उन्हें नहीं है, करना भी नहीं चाहते । इसी प्रकार कुछ लोग चारित्रसाधना के नाम पर केवल कुछ क्रियाकाण्ड कर लेते हैं । वे साधना के क्ष ेत्र में दौड़ना जानते हैं, दौड़ते भी हैं, पर उन्हें न लक्ष्य का पता है और न राह की पहचान है। कुछ साधक ज्ञान की मशाल लिये हुए आगे बढ़ रहे हैं, उनके जीवन-साधना में ज्ञान का प्रकाश है, वे सही लक्ष्य को भी जानते हैं, किन्तु उन्हें क्रिया से इन्कार है। उनका मस्तिष्क चलता है, पर पैर नहीं चलते । वे केवल वाणी - विलास मात्र से अपने मन को सन्तुष्ट कर लेते हैं । ऐसे लोग ज्ञान को जीविका का साधन बनाकर चलते हैं । कुछ लोग वेश को आजीविका का साधन बना लेते हैं । मुनि-वेश तो केवल जनता के विश्वास के लिए है । परन्तु जिन्हें साधना का सही उद्देश्य पाना नहीं है, वे अपने वेश को अपने जीने का साधन बना लेते हैं । वे कर्त्तव्याकर्तव्य का, मौलिक मर्यादाओं का विवेक भुला कर एक मात्र साधुवेश के द्वारा जनता को ठगते हैं । भौतिक विद्या, मन्त्र, भविष्यवाणी, जड़ी-बूटी, कौतुक, भाषाचातुर्य, कथा - उपदेश आदि को आजीविका का साधन बनाना, साधु जीवन के लिए उचित नहीं है। जिन साधकों के पास साधना का सच्चा रस नहीं है, वे भौतिक विद्या, मन्त्र-तन्त्र, ज्योतिष आदि के बल पर समाज में, अपना वर्चस्व जमाते हैं । कुछ स्वार्थी भक्त भी लोभवश उनके बहकावे में आ जाते हैं, साधु को भी प्रसिद्धि आदि का लोभ सताता है । इस प्रकार दोनों लोभ की दुनिया में भटक जाते हैं । fron यह है कि साधक जब अपने पास अर्जित विविध विद्या, ज्ञान आदि की शक्ति को जीविका के साधन के रूप में उपयोग करता है, तब उसका जीवन अशुद्ध, दूषित, लक्ष्यभ्रष्ट और वीतराग - आज्ञाबाह्य हो जाता है । साधक को अपनी ज्ञान-दर्शन- चारित्र की साधना के बल पर जीना चाहिए। ताकि वह जिस उद्देश्य से दीक्षित हुआ है, तदनुसार लक्ष्य को प्राप्त कर सके । कौन-सा श्रयस्कर : कठोर तप या शुद्ध धर्माचरण साधना के मार्ग में कई साधक केवल एक चीज को ही पकड़ कर

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