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अमरदीप
आशय यह है कि क्रोधी व्यक्ति क्रोध करके प्रतिपक्षी को दुःख मैं डालना चाहता है, इसके लिए क्रोधवश वह तीखे शब्दों द्वारा प्रतिपक्षी के हृदय को बींध डालना चाहता है और जब वह तिलमिला उठता है, तब उसके दिल में प्रसन्नता की लहर दौड़ पड़ती है । अपने प्रतिपक्षी के दुःख में उसे आनन्द आता है। किन्तु यह मानना भ्रम होगा कि क्रोध केवल एक पक्ष को ही दुःखी करता है, किन्तु वह दोनों पक्षों को झुलसाता है। जिसके दिल में क्रोध ने प्रवेश किया है, उसे भी वह चैन से नहीं बैठने देता.। उसके मन की शान्ति भी लुप्त हो जाती है। अत: साधक यह न समझे कि क्रोध की आंच तुम्हारे प्रतिपक्षी को ही झुलसाकर रह जायेगी, बल्कि उल्टी हवा चली तो वह बच जायेगा और साधक झुलस कर राख का ढेर हो जायेगा। गोशालक का तेजोलेश्या के रूप में प्रकट हुआ क्रोध महावीर प्रभु को हानि । नहीं पहुंचा सका, उल्टे वह उसी के सर्वनाश का कारण बना। अतः साधक को उत्पत्ति के क्षणों में ही क्रोध को रोक देना चाहिए, ताकि वह क्रोध की चिनगारी वहीं बुझ जाय और ज्वाला का रूप न ले।
क्रोध क्या है ? : एक विश्लेषण
___ अर्हतर्षि तारायण क्रोध की भयंकरता का विश्लेषण करते हुए कहते
कोवो अग्गी तमी मच्च, विसं वाधी अरी रयो। '
जरा हाणी भयं सोगो, मोहं सल्लं पराजयों ॥२॥ अर्थात्-'क्रोध अग्नि है, अन्धकार है, मृत्यु है, विष है। वह व्याधि, शत्रु, रज, जरा, हानि, भय, शोक, मोह, शल्य और पराजय है।' ।
क्रोध को यहाँ १४ उपमाओं से उपमित किया गया है। क्रोध में आग की ज्वाला, अन्धेरे की विडम्बना है, मृत्यु की विभीषिका है। क्रोध अपने आप में विष और व्याधि है । आत्मा का यह सबसे बड़ा शत्रु है। उसमें बुढ़ापे की-सी दुर्बलता है तो उससे बहुत ही हानियाँ हैं। क्रोध में भय, मोह और शोक भी है। क्योंकि क्रोध के प्रारम्भ में मूढ़ता है और अन्त में पश्चात्ताप है । भय और शोक अज्ञान और मोह के ही पुत्र हैं। क्रोध रज और शल्यरूप भी है, क्योंकि क्रोध कर्मरज को लाता है, तथा वैज्ञानिकों की खोज के अनुसार क्रोध के क्षणों में शरीर से तलवार और बी आदि के आकार के शस्त्र निकलते हैं, इसलिए क्रोध शस्त्ररूप भी हैं। क्रोधवश मनुष्य प्रति. पक्षी के साथ कपट करके उसे दुःखी करता है, तथा परलोक में जाकर भी