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क्रोध की अग्नि : क्षमा का जल
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सक्का तमो णिवारेत्तु मणिणा जोतिणा वि वा। कोवं तमं तु दुज्जयो संसारे सव्वदेहिणं ॥७॥ सत्तं बुद्धि मती मेधा, गंभीरं सरलत्तणं । कोहग्गहाभिभूतस्स सव्वं भवति णिप्पभं ॥८॥ गंभीरमेरु-सारे वि पुटवं होऊण संजमे ।
कोउग्गमरयो धूते असारत्तमतिच्छति ॥६॥ अर्थात्-बाह्य अंधकार का निवारण तो मणि या ज्योति के द्वारा किया जा सकता है, मगर क्रोध का अन्धकार संसार के समस्त देहधारियों के लिये अजेय है ।।७।।
क्रोधरूपी ग्रह से ग्रस्त व्यक्ति के सत्व, बुद्धि, मति, मेधा, गाम्भीर्य और सरलता सभी निष्प्रभ हो जाते हैं । ८॥
पहले (साधक में) संयम, सुमेरु पर्वत के समान गम्भीर और सारशील रहा हो, परन्तु क्रोधोत्पत्ति की रज से आवृत होकर वह निःसार हो जाता
है ॥६॥
छोटा-सा दीपक घर के अन्धकार को दूर कर सकता है, लेकिन क्रोध का अन्धकार ऐसा अन्धकार है, जिसे संसार का कोई भी दीपक दूर नहीं कर सकता । क्रोधरूपी अंधकार पर काबू पाना संसार के समस्त प्राणियों के लिए टेढ़ी खीर है।
क्रोध एक राक्षस है। वह आता है, तो बाते ही सारे शरीर और मन में तूफान मचा देता है । क्रोधरूपी राक्षस आते ही अपना भोजन मांगता है। राक्षस जैसे सत्व चूस लेता है, वैसे ही क्रोधरूपी राक्षस क्रोधकर्ता का सत्व चूस लेता है । उसकी सद्-असद्विवेकशालिनी बुद्धि और प्रतिभा को खा जाता है। उसकी तत्वग्राहिणी प्रज्ञा, वाणी की प्रखरता, गम्भीरता, सरलता और शरीर की कार्यक्षमता को वह मिनटों में चट कर जाता है।
कहते हैं-खटमल का खून लगते ही हीरे की चमक समाप्त हो जाती है, वैसे ही क्रोध का दाग लगते ही दिल और दिमाग की सारी चमक फीकी पड़ जाती है।
__ आज का मानव घर, परिवार, बाजार और ग्राम-नगर में सर्वत्र दूसरे की जरा सी गलती पर क्रोध का प्रयोग करता है । क्रोध की भाषा में समझाने की भ्रान्ति के कारण क्या गृहस्थों और क्या साधुओं, सब में क्रोध की तालीम घर कर गई है। बालकों को क्षमा का पाठ परीक्षा भर के लिए