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पहचान : बाल और पण्डित को
धर्मप्रेमी श्रोताजनो!
मानव के पास दो प्रकट शक्तियाँ हैं, एक है जीभ और दूसरी है काया। जीभ के द्वारा वह (वाणी) बोलता है और काया के द्वारा वह विभिन्न चेष्टाएँ, क्रियाएँ या प्रवृत्तियाँ करता है। ये उसकी दोनों ही शक्तियाँ.प्रत्यक्ष हैं। मन की शक्ति भी मनुष्य को मिली है, पर वह प्रत्यक्ष--प्रकट नहीं है। यद्यपि जिह्वा तो पशुओं को भी मिली है, परन्तु उनकी जिह्वा उनके भावों को स्पष्टतः अभिव्यक्त करने में असमर्थ है; जबकि मानव को वाणी की यह कुदरती देन मिली है कि वह इसके द्वारा अपने विचारों को व्यक्त कर सके। मनुष्य के पास दूसरी व्यक्त शक्ति है काया। वाणी की अपेक्षा काया के द्वारा किये जाने वाले व्यवहार या आचरण की शक्ति बढ़कर है, शीघ्र प्रभाव डालती है।
__मानव इन दोनों प्रकार की व्यक्त शक्तियों से परखा जा सकता है। किस प्रकार और कैसे ? इसके लिए तैतीसवें अध्ययन में महाशालपुत्र अरुण अर्हतर्षि कहते है-.
'दोहिं ठाणेहिं बालं जाणेज्जा, दोहि ठाणेहि पंडितं जाणेज्जा ।
-सम्मापओएणं मिच्छा-पोतेणं, कम्मुणा भासणेण य ।'
दो स्थानों (कारणों) से मानव का बालरूप जाना जाता है और दो ही स्थानों से पण्डित रूप जाना जाता है। यथा-सम्यकप्रयोग से और मिथ्या-प्रयोग से तथा कर्म (कार्य) से और भाषण से ।
ज्ञानी पण्डित) और अज्ञानी (बाल) की पहचान क्या है ? इसके समाधान के लिए अर्हतर्षि अरुण कहते हैं-हर आत्मा में अनन्त शक्ति निहित है। उस शक्ति का उपयोग वह अच्छे रूप में करता है या बुरे रूप में ? इसी आधार से बताया जा सकता है कि वह ज्ञानी है अथवा अज्ञानी ।