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ऋषियों की दिव्यकृषि १७६ प्राणिमात्र के प्रति दया का झरना बहाने वाली इस दिव्य कृषि को करके ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र भी सिद्ध-मुक्त हो सकता है।
जिसके मन के कोने-कोने मैं प्राणिमात्र के लिए दया और करुणा का झरना फूट पड़ा है, जिसका करुणा-निर्झर देश, काल, पंथ, जाति और सम्प्रदायों के गड्ढों में कैद नहीं होता, अपितु मानवमात्र ही नहीं, प्राणिमात्र के लिए मुक्तरूप में बहता है, वही इस दिव्यकृषि को कर सकता है और सिद्धिस्थिति पा सकता है, फिर वह चाहे जिस जाति में जन्मा हो, किसी भी पंथ में पला हो, जिसने आत्मा के क्षेत्र में करुणा के बीज डाले हैं, वह बन्धनातीत है । एक अंग्रेज विचारक ने कहा था
‘Paradise is open to all kind hearts'
दयाशील हृदय के लिए स्वर्ग के द्वार सदैव खुले रहते हैं। जिसके दिल में दया है, उसका दिल अमीर है। उसका हृदय सदा प्रसन्नता से छलकता रहता है । दया ही एक ऐसा तत्त्व है. जो मानव में मानवता की प्रतिष्ठा कर सकता है। हाथी के भव में दया के कारण ही मेघकुमार के जीव ने मनुष्य जन्म पाया, मगध-सम्राट् श्रेणिक के यहाँ राजकुमार के रूप में पैदा हुआ और युवावस्था में ही भागवती दीक्षा प्राप्त करके अपना कल्याण कर सका।
धर्मरुचि अनगार के अंग अग में प्राणिमात्र के प्रति करुणा का निर्झर फूट रहा था, उसके कारण वे अपने आत्म क्षेत्र में करुणा के बीज बोकर कृतार्थ हो गए।
अतः मानव के लिए सभी प्राणियों से अतिरिक्त कोई विशेषता या गौरव की वस्तु हैं तो वह है दिल में दया का कलकल-छलछल बहता झरना । उसी करुणाशील हृदय का जीवन सार्थक है, समाज उसकी दयालुता से संगठित है। कहा भी है --
Kindness is the golden chain by which society is bound together.'
वास्तव में विश्व आज एक दूसरे के इतना निकट है, एक दूसरे के प्रति विश्वास और आशा है, सहयोगभाव है, सहानुभूति है, वह सब दया की देन है। क्योंकि दया ही वह सुनहरी चैन (जंजीर) है, जो समाज को परस्पर बाँधती है। बन्धुओ! __आप भी इस दिव्यकृषि को समझकर यथाशक्ति जीवन में क्रियान्वित करें।