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लोक का आलोकन
मानव मन को जिज्ञासा और समाधान
धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! मनुष्य ने जबसे इस दुनिया में आँखें खोलीं, तभी से उसके मन में जिज्ञासा पैदा होती है, कि यह जीवन क्या है ? जगत क्या है ? यह विस्तृत भूखण्ड क्या है ? इसका नियामक कौन है ? किन तत्त्वों से इसका निर्माण हुआ है ? यह सान्त है या अनन्त है ? इसके कितने रूप हैं ? मैं कौन हूँ ? कहाँ से आया हूँ ? कहाँ जाऊँगा ? जो जन्म लेता है, वह यहां कुछ वर्ष बिताकर फिर कहाँ और क्यों चला जाता है ? वह कौन-सा लोक है, जहाँ आत्मा चिर-शान्ति प्राप्त कर सकता है ? जहाँ से पुनरागमन नहीं होता, वह कौन-सा स्थान है ? ये और इस प्रकार के कई प्रश्न मानव के मन मस्तिष्क में मँडराते रहते हैं। इन प्रश्नों का समाधान पाने को विचारक मानव उत्सुक रहता है। विभिन्न धर्म और दर्शन इनका समाधान विभिन्न रूप से करते हैं। जैनदृष्टि से इन प्रश्नों का व्यावहारिक और युक्तियुक्त समाधान प्राप्त होता है । इनमें से कुछ प्रश्नों को उठाकर उनका समाधान अर्हतर्षि पार्श्व इस इकत्तीसवें अध्ययन में करते हैंप्रश्न – (१) केयं लोए?
(२) कइविधे लोए ? (३) कस्स वा लोए ? (४) के वा लोएभावे ? (५) केण वा अढेण लोए पवुच्चई ? (६) का गती? (७) कस्स वा गती? (८) के वा गतिभावे ? (९) केण वा अट्टैण गती पवुच्चति ?