________________
१४२ अमरदीप संचय और (मधुमक्खी द्वारा किया गया) मधु-संग्रह देखकर इस प्रकार के निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि संयम में ही उद्यम करना चाहिए ॥२२॥
उच्च आदि के विकल्प (मनुष्य की) भावना द्वारा ही किये जाते हैं, क्योंकि चक्रवर्ती भी सोने के दंतकाष्ठ (दतौन) को खाता नहीं, फेंक देता है ॥२३॥
क्षण, स्तोक, मूहर्तभर की गई अल्पकालिक शुभक्रिया भी विपुल फल दे जाती है। फिर जो साधक सिद्धस्थिति प्राप्त करने के लिए आजीवन पुरुषार्थ करते हैं, उनकी (आत्म) साधना का तो कहना ही क्या ? ॥२४॥
अर्हतर्षि आर्द्रक ने यहाँ छह गाथाओं में काम से विरत होने या काम पर विजय पाने के उपाय बताए हैं।
एक बात तो निश्चित है कि कामवासना का एकदम दमन कई बार अनेक शारीरिक और मानसिक रोगों को जन्म दे सकता है । कामोत्त जना को दबाने से कई बार स्नायविक तनाव भी हो जाता है। जब काम का प्रबल वेग व्यक्ति के मन में होता है, परन्तु परिवार, समाज आदि के डर से वह उसे दमित कर लेता है, तो प्रायः अवचेतन मन में उसकी आग धधकती रहती है और निमित्त पाकर प्रबल वेम से कामोत्तेजना भड़क सकती है। फिर वह अनेक प्राकृतिक-अप्राकृतिक द्वारों से खुलकर खेल सकती है।
अतः अर्हतर्षि कामविजय का सर्वोत्तम उपाय बताते हैं. - आन्तरिक वैराग्य । जब कामवासना से होने वाले कुपरिणाम पर विचार करके मनुष्य को अन्तर् से उस पर विरक्ति हो जाएगी, तब कामवासना का प्रादुर्भाव होते ही एकदम सावधान होकर उसे खदेड़ देगा।
___ कामविकार के प्रबल अन्धड़ के आते ही मनुष्य वैराग्य का गोगल्स (काले रंग का चश्मा) अपनी दृष्टि पर लगा लेगा। वह यही सोचेगा - आत्मा अनन्त काल से विविध गतियों और योनियों में यात्रा करती आ रही है। उस सुदीर्घ यात्रा में मैंने अनेक बार देव और मानव भव में हजारों बार इन कामभोगों को अपनाया, भोगा और इनके परिणामों को भी प्राप्त किया, फिर भी क्या मैं इनसे शाश्वत शान्ति पा सका हूँ ? इन कामभोगों से न तो मुझे कभी तृप्ति हुई है, न कभी शान्ति ही; बल्कि क्षणिक सुख के बाद मुझे अनन्त-अनन्त दुःखों की परम्परा प्राप्त हुई है।
अतः सर्वोत्तम उपाय यह है कि काम मेरी अनन्तशक्तिसम्पन्न आत्मा पर विजय पाए, इससे तो अच्छा यही है मैं ही काम से सर्वथा विरक्त होकर इस पर विजय प्राप्त करू ।
. कामविजय का दूसरा उपाय है- प्रतिक्षण सावधानी। जिस प्रकार