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अमरदीप
उसकी पूर्ति करने जाता है, त्यों-त्यों वह अधिकाधिक दुखा होता जाता है। सुख कामपिपासु से दूर भागता जाता है। एक पाश्चात्य विचारक 'सेनेको' केहेता है
If sensuality were happiness, beasts were happier than men; but human felicity is lodged in the soul not in the flesh.
'यदि कामवासना में अधिक सुख हो तो जानवर मनुष्यों की अपेक्षा अधिक सुखी होते, किन्तु मनुष्य का आनन्द आत्मा में रहा हुआ है, मांस (शरीर) में नहीं।'
अगर कामभोगों में ही सुख होता तो अमेरिका के लोग सबसे अधिक सुखी होते । परन्तु आज वे लोग ही शारीरिक और मानसिक, दोनों प्रकार से सबसे अधिक दुःखी हैं । उनके पास कामभोगों के उपभोग की एक से एक बढ़कर सामग्री है, धन भी प्रचुर मात्रा में है, सुख के साधन भी अत्यधिक हैं। वे इन्द्रिय विषयों (कामभोगों) का भी खुलकर उपभोग करते हैं, फिर भी उन्हें क्षणिक सुख के सिवाय अधिकतरं दुःख ही दुःख मिलता है । वे कामभोगों का उपभोग करते-करते ऊब गये हैं। अगर कामभोगों की तृप्ति ही सुख का कारण होती तो अमेरिका के लोग सुख की खोज में भारत जैसे देशों में न भटकते, न ही भारतीय योगियों से वे सुख का उपाय पूछते ।
एक विचारक ने कहा है_ 'सांसारिक और इन्द्रिय-विषयों के आनन्द प्रायः क्षणिक, झूठे और धोखे से भरे होते हैं । वे नशैली चीजों से होने वाले नशे के समान अनेक पश्चात्तापों को साथ लिए हुए केवल एक घंटे तक पागलपन की खुशी देते हैं।' इसीलिए चित्तमुनि ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को बोध देते हुए कहते हैं
बालाभिरामेसु दुहावहेसु न तं सुहं कामगुणेसु राया ! 'हे राजन् ! ये कामभोग मूढ़ (अज्ञानी) लोगों को ही रमणीय लगते हैं, परन्तु वे अनेक दुःखों को लाने वाले हैं।'
जो साधक कामवासना के चक्कर में पड़ जाता है, वह अपना तेज खो बैठता है, शारीरिक दृष्टि से वह अनेक रोग और विपत्तियों से घिर जाता है, उसके जीवन का रस निचूड़ जाता है, मानसिक दृष्टि से वह शोक संताप और अतृप्ति के दुःख का भागी बन जाता है। वह मन, वाणी और शरीर, तीनों से निःसत्व बन जाता है। जब जीवन में ब्रह्मचर्य का