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नमो नमो निम्मलदसणस्स
गच्छाचार प्रकिर्णक-७/१- हिन्दी अनुवाद
RCM
[१] देवेन्द्र से नमित महा ऐश्वर्यवाली, श्री महावीर देव को नमस्कार करके, श्रुतरूप समुद्र में से सुविहित मुनि समुदाय ने आचरण किए हुए गच्छाचार संक्षेप से उद्धरकर मैं कहूँगा।
[२] गौतम ! इस जगत में कुछ ऐसे भी जीव है कि जो, उस उन्मार्गगामी गच्छ में रहकर या
भव परम्परा में भ्रमण करते है । क्योंकि असत्पुरुष का संग शीलवंत-सज्जन को भी अधःपात का हेतु होता है ।
[३] गौतम ! अर्ध प्रहर-एक प्रहर दिन, पक्ष, एक मास या एक साल पर्यन्त भी सन्मार्गगामी गच्छ में रहनेवाले
[४] आलसी-निरुत्साही और विमनस्क मुनि भी, दुसरे महाप्रभाववाले साधुओं को सर्व क्रिया में अल्प सत्त्ववाले
[५] जीव से न हो शके ऐसे तप आदि रूप उद्यम करते देखकर, लज्जा और शंका का त्याग करके धर्मानुष्ठान करने में उत्साह धरते है । और फिर गौतम !
[६] वीर्योत्साह द्वारा ही जीव ने जन्मान्तर में किए हुए पाप, मुहूर्त मात्र में जलकर राख हो जाते है ।
[७] इसलिए अच्छी तरह से कसौटी करके जो गच्छ सन्मार्ग प्रतिष्ठित हो उसमें जीवन पर्यन्त बँसना । क्योंकि जो संयत सक्रियावान् हो वही मुनि है ।
[८] आचार्य महाराज गच्छ के लिए मेढी, आलम्बन, स्तम्भ, दृष्टि, उत्तम यान समान है । यानि कि मेथी - (जो बंध से जानवर मर्यादा में रहे वो) में बाँधे जानवर जैसे मर्यादा में रहते है, वैसे गच्छ भी आचार्य के बन्धन से मर्यादा मे प्रवर्तते है । गड्ढे आदि में गिरते जैसे हस्तादिक का आलम्बन धरके रखते है, वैसे संसार समान गति में गिरते गच्छ को आचार्य धरके रखते है । जैसे स्तम्भ प्रासाद का आधार है, वैसे आचार्य भी गच्छ रूप प्रासाद का आधार है । जैसे नजर शुभाशुभ चीज जीव को बतानेवाली है, वैसे आचार्य भी गच्छ को भावि शुभाशुभ बतानेवाले है । जैसे बिना छिद्र का उत्तम जहाज जीव को समुद्र तट पर पहुँचाता है, वैसे आचार्य भी गच्छ को संसार के तट पर पहुँचाते है । इसलिए गच्छ की कसौटी करने की इच्छा रखनेवाले को पहले आचार्य की ही कसौटी लेना चाहिए ।
[१] हे भगवन् ! छद्मस्थमुनि किस निशानीओ से उन्मार्गगामी आचार्य को जान शके ? इस प्रश्न के उत्तर में श्री गुरु कहते कि हे मुनि ! उस निशानीर्यां मैं कहता हूँ वो सुनो ।
[१०] अपनी मरजी के अनुसार व्यवहार करनेवाले, दुष्ट-आचारवान्, आरम्भ में प्रवविनार, पीठफलक आदि में प्रतिबद्ध, अप्काय की हत्या करनेवाले
[११] मूल और उत्तर गुण से भ्रष्ट हुए, सामाचारी के विराधक, हमेशा गुरु के आगे