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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
जानना ।
[७३] व्यंतर देव उर्ध्व, अधो और तिर्यक् लोक में पेदा होते है और निवास करते है । उसके भवन रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर के हिस्से में होते है ।
[७४-७६] एक-एक युगल में नियमा अनगिनत श्रेष्ठ भवन है । वो फाँसले में अनगिनत योजनवाले है, जिसके विविध विविध भेद इस प्रकार है । वो उत्कृष्ट से जम्बुद्वीप समान, जघन्य से भरतक्षेत्र समान और मध्यम से विदेह क्षेत्र समान होते है । जिसमे व्यंतर देव श्रेष्ठ तरुणी के गीत और संगीत की आवाज की कारण से नित्य सुख युक्त और आनन्दित रहने से पसार होने वाले वक्त को नहीं जानते ।
[७७-७८] काल, सूरूप, पुन्य, भीम, किन्नर, सुपुरिष, अकायिक, गीतरती ये आठ दक्षिण में होते है । मणि-स्वर्ण और रत्न के स्तूप और सोने की वेदिका युक्त ऐसे उनके भवन दक्षिण दिशा की ओर होते है और वाकी के उत्तर दिशा में होते है ।
[७९] इस व्यंतर देव की जघन्य आयु १०००० साल है और उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम है ।
[८०] इस तरह व्यंतर देव के भवन और स्थिति संक्षेप में कहा है अब श्रेष्ठ ज्योतिष्क देव के आवास का विवरण सुन ।
[८१-८४] चन्द्र, सूर्य, तारागण, नक्षत्र और ग्रहगण समूह इस पाँच तरह के ज्योतिषी देव बताए है । अब उसकी स्थिति और गति बताऊँगा । तिर्छालोक में ज्योतिपी के अर्धकपित्थ फल के आकारवाले स्फटिक रत्नमय, रमणीय अनगिनत विमान है । रत्नप्रभा पृथ्वी के समभूतल हिस्से से ७९० योजन ऊँचाई पर उसका निम्न तल है और वो समभूतला पृथ्वी से सूर्य ८०० योजन ऊपर है । उसी तरह चन्द्रमा ८८० योजन ऊपर है उसी तरह ज्योतिष देव का विस्तार ११० योजन में है ।
[८५] एक योजन के ६१ हिस्से किए जाए तो ६१वे हिस्से में ५६ वे हिस्से जितना चन्द्र परिमंडल होता है । और सूर्य का आयाम विष्कम्भ ४५ हिस्से जितना होता है ।
[८६] जिसमें ज्योतिषी देव श्रेष्ठ तरुणी के गीत और वाद्य की आवाज की कारण से हमेशा सुख और प्रमोद से पसार होनेवाले काल को नहीं जानते ।
[८७-८९] एक योजन के ६१ हिस्से में से ५६ हिस्से विस्तारवाला चन्द्र मंडल होता है और २८ जितनी चौड़ाई होती है । ४८ भाग जितने फैलाववाला सूर्य मंडल और २४ हिस्से जितनी चौड़ाई होती है । ग्रह आधे योजन विस्तार में उससे आधे विस्तार में नक्षत्र समूह और उसके आधे विस्तार में तारा समूह होता है । उससे आधे विस्तार के अनुसार उसकी चौड़ाई होती है ।
[१०] एक योजन का आधा दो गाउ होता है । उसमें गाउ ५०० धनुष का होता है । यह ग्रहनक्षत्र समूह और ताराविमान का विष्कम्भ है ।
[११] जिसका जो आयाम विष्कम्भ है उससे आधी उसकी चौड़ाई होती है । और उससे तीन गुनी अधिक परिधि होती है ऐसा जान ।
[९२-९३] चन्द्र-सूर्य विमान का वहन १६००० देव करते है, ग्रह विमान का वहन ८००० देव करते है । नक्षत्र विमान का वहन ४००० देव करते है और तारा विमान का