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निशीथ - ११/६६०
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जात्यरुपा, हीरे, मणि, मुक्ता, काँच, दाँत, शींग, चमड़ा, पत्थर (पानी रह शके ऐसे) मोटे वस्त्र, स्फटिक, शंख, वज्र (आदि) के पात्रा बनाए, धारण करे, उपभोग करे, लोहा आदि का पात्र बँधन करे ( बनाए), धारण करे, उपभोग करे, अन्य से यह काम करवाए या वैसा करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[६६१-६६२] जो साधु-साध्वी अर्ध योजन से ज्यादा दूर पात्र ग्रहण करने की उम्मीद से जाए या विघ्नवाला मार्ग या अन्य किसी कारण से उतनी दूर से लाकर पात्र दे तब ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[६६३-६६४] जो साधु-साध्वी धर्म की निंदा (अवर्णवाद) या अधर्म की प्रशंसा ( गुणगान ) करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[६६५-७१७] जो साधु-साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के पाँव को एक या अनेकबार प्रमार्जन करे, करवाए, अनुमोदना करे, ( इस सूत्र से आरम्भ करके) एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हुए यानि कि विचरण करते हुए जो साधु-साध्वी अन्य तीर्थिक या गृहस्थ के मस्तक को आवरण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
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(यहाँ ६६५ से ७१७ कुल ५३ सूत्र है । जो उद्देशक - ३ - के सूत्र १३३ से १८५ अनुसार जान लेना, फर्क केवल इतना कि इस ५३ दोष का सेवन अन्य तीर्थिक या गृहस्थ को लेकर किया, करवाया या अनुमोदन किया हो । )
[ ७१८-७२३] जो साधु-साध्वी खुद को, दुसरो को डराए, विस्मीत करे यानि आश्चर्य पमाडे, विपरीत रूप से दिखाए, या फिर जीव को अजीव या अजीव को जीव कहे, शाम को सुबह या सुबह को शाम कहे, इस दोष का खुद सेवन करे, दुसरों से करवाए या सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७२४] जो साधु-साध्वी जिनप्रणित चीज से विपरीत चीज की प्रशंसा करे, करवाएअनुमोदना करे । जैसे कि सामने किसी अन्य धर्मी हो तो उसके धर्म की प्रशंसा करे आदि तो प्रायश्चित्त ।
[७२५] जो साधु-साध्वी दो विरुद्ध राज्य के बीच पुनः पुनः गमनागमन करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित् ।
[७२६-७३३] जो साधु-साध्वी दिन में भोजन करने की निंदा करे, रात्रि भोजन की प्रशंसा करे, दिन को लाया गया अशन-पान, खादिम स्वादिम रूप आहार दुसरे दिन करे, दिन में लाया गया अशन - आदि रात को खाए, रात को (सूर्योदय से पहले) लाया गया अशन आदि सुबह में खाए, दिन में लाया गया अशन आदि रात को खाए, आगाढ़ कारण बिना अशन आदि आहार रात को संस्थापित करे यानि कि रख ले, इस तरह रखा गया अशन आदि आहार में से त्वचा प्रमाण, भस्म प्रमाण या बिन्दु प्रमाण आहार खाए, इसमें से कोइ दोष खुद करे, अन्य से करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त ।
[७३४] जो साधु-साध्वी, जहाँ भोजन में पहले माँस मच्छी दी जाती हो फिर दुसरा भोजन दिया जाता हो, जहाँ माँस या मच्छी पकाए जाते हो वो स्थान, भोजन गृह में से जो लाया जाता हो या दुसरी किसी जगह ले जाते हो, विवाह आदि के लिए जो भोजन तैयार होता हो, मृत भोजन, या ऐसे तरीके का अन्य भोजन एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहे