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व्यवहार - ९/२०६
गया आहार साधु को लेना न कल्पे, लेकिन यदि वो आहार अपड़िहारिक हो तो साधु-साध्वी को लेना कल्पे ।
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[२०७-२१०] सागारिक- शय्यातर के दास, नौकर चाकर, सेवक आदि किसी भी घर में या, घर के बाहर खा रहे तो उनके लिए बनाया गया आहार बचे वो नौकर आदि वापस लेने की बुद्धि से शय्यातर को दे तो ऐसा आहार शय्यातर दे तब साधु-साध्वी का लेना न कल्पे, वापस लेने की बुद्धि रहित यानि अप्रतिहारिक हो तो कल्पे ।
[२११-२१४] शय्यातर के ज्ञातीजन हो, एक ही घर में, या घर के बाहर, एक ही, या अलग चूल्हे का पानी आदि ले रहे हो लेकिन उसके सहारे जिन्दा हो तो उनका दिया गया आहार साधु को लेना न कल्पे ।
[२१५-२१८] शय्यातर के ज्ञातीजन हो, एक दरवाजा हो, आने-जाने का एक ही मार्ग हो घर अलग हो लेकिन घर में या घर के बाहर रसोई का मार्ग एक ही हो । अलगअलग चूल्हे हो, या एक ही हो तो भी शय्यातर के आहार- पानी पर जिसकी रोजी चलती हो, उस आहार में से साधु को दे तो वो आहार लेना न कल्पे ।
[२१९-२३२] शय्यातर की १. तेल बेचने की, २. गुड़ की, ३. किराने की, ४. कपड़े की, ५. सूत की ६. रूई और कपास की, ७. गंधीयाणा की, ५. मीठाई की दुकान है उसमें शय्यातर का हिस्सा है । उस दुकान पर बिक्री होती है तो उसमें से कोई भी चीज दे तो वो साधु को लेना न कल्पे, लेकिन यदि इस दुकान में शय्यातर का हिस्सा न हो, उस दुकान पर बिक्री होती हो उसमें से किसी साधु को दे तो लेना कल्पे ।
[२३३-२३६] दुसरों की अन्न आदि रसोई में शय्यातर का हिस्सा हो, वखार में पड़े आम में उसका हिस्सा हो तो उसमें से दिया गया आहार आदि साधु को न कल्पे, यदि शय्यातर का हिस्सा न हो तो कल्पे ।
[२३७] सात दिन की सात पड़िमा समान तपश्चर्या के ४९ रात-दिन होते है पहले सात दिन अन्न-पानी की एक दत्ति- दुसरे सात दिन दो-दो दत्ति - यावत् साँतवे साँ साँत-साँत दत्ति गिनते कुल १९६ दत्ति होती है वो तप जिस तरह से सूत्र में बताया है, जैसा मार्ग है, जैसा सत्य अनुष्ठान है । ऐसा सम्यक् तरह से काया से छूने के द्वारा निरतिचार, पार पहुँचे हुए, कीर्तन किए गए उस तरह से साधु आज्ञा को पालनेवाले होते है ।
[२३८-२४०] (ऊपर कहने के अनुसार) आँठ दिन की आँठ पड़िमा समान तप कहा है । पहले आँठ दिन अन्न पानी की एक-एक दत्ति उस तरह से आँठवी पड़िमा - आँठ की आठ दत्ति गिनते कुल ६४ रात-दिन २८८ दत्ति से तप पूर्ण हो, उसी तरह नौ दिन की नौ पड़िमा ८१ रात-दिन और कुल दत्ति ४०५ दश दिन की दश पड़िमा १०० दत्ति और कुल दत्ति ५५० होती है ।
उसी तरह आँठवी, नौ, दश प्रतिमा का सूत्र, कल्प, मार्ग, यथातथ्यपन से सम्यक् तरह से काया द्वारा स्पर्श-पालन, शुद्धि-तरण, किर्तन - आज्ञा से अनुपालन होता है । [२४१] दो प्रतिमा बताई है वो इस प्रकार है-छोटी पेशाब प्रतिमा और बड़ी पेशाब
प्रतिमा ।
[२४२] छोटी पेशाब प्रतिमा बहनेवाले साधु को पहले शरद काल मे ( मागसर मास