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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
बैठना, सोना, स्वाध्याय आदि करना ।।
१६-१८. जान-बूझकर स्निग्ध, गीली, सचित्त रजयुक्त पृथ्वी पर...सचित्त शीला, पत्थर, धुणावाला या सचित्त लकड़े पर, अंड़ बेईन्द्रिय आदि जीव, सचित्त बीज, तृण आदि झाकल-पानी, चींटी के नगर-सेवाल-गीली मिट्टी या मकड़ी के जाले से युक्त ऐसे स्थान पर कार्योत्सर्ग, बैठना, सोना, स्वाध्याय आदि क्रिया करना...मूल, कंद, स्कंध, छिलका, कुंपण, पत्ते, बीज और हरित वनस्पति का भोजन करना ।
१९-२०. एक साल में दस बार उदकलेप (जलाशय को पार करने के द्वारा जल संस्पर्श) और माया-स्थान (छल कपट) करना ।
२१. जान-बूझकर सचित पानीयुक्त हाथ, पात्र, कड़छी या बरतन से कोई अशन, पान, खादिम-स्वादिम आहार दे तब ग्रहण करना ।
स्थविर भगवंत ने निश्चय से यह २१-सबल दोष कहे है । उस प्रकार मैं कहता हूं।
यहाँ अतिक्रम-व्यतिक्रम और अतिचार वो तीन भेद से सबल दोष की विचारणा करना। दोष के लिए सोचना वो अतिक्रम, एक भी डग भरना वो व्यतिक्रम और प्रवृत्ति करने की तैयारी यानि अतिचार (दोष का सेवन तो साफ अनाचार ही है ।) इस सबल दोष का सेवन करनेवाला शबल-आचारी कहलाता है ।
जो कि शबल दोष की यह गिनती केवल २१ नहीं है । वो तो केवल आधार है । ये या इनके जैसे अन्य दोष भी यहां समज लेना ।
दशा-३-आशातना
आशातना यानि विपरीत व्यवहार, अपमान या तिरस्कार जो ज्ञान-दर्शन का खंडन करे, उसकी लघुता या तिरस्कार करे उसे आशातना कहते है । ऐसी आशातना के कई भेद है । उसमें से यहाँ केवल-३३ आशातना ही कही है । ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि गुण में अधिकतावाले या दीक्षा, पदवी आदि में बड़े हो उनके प्रति हुए अधिक अवज्ञा या तिरस्कार समान आशातना का यहाँ वर्णन है ।
[४] हे आयुष्यमान् ! उस निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्व-मुख से मैंने इस प्रकार सुना है । यह आर्हत् प्रवचन में स्थविर भगवंत ने वाकई में ३३-आशातना प्ररूपी है । उस स्थविर भगवंत ने सचमुच कौन-सी ३३-आशातना बताई है ? वो स्थविर भगवंत ने सचमुच जो ३३ आशातना बताई है वो इस प्रकार है
१-९. शैक्ष (अल्प दीक्षा पर्यायवाले साधु) रत्नाधिक-बड़े दीक्षापर्याय या विशेष गुणवान् साधु) के आगे चले, साथ-साथ चले, अति निकट चले, आगे, साथ-साथ या अति निकट खड़े रहे, आगे, साथ-साथ या अति निकट बैठे ।
१०-११. रानिक साधु के साथ बाहर बिचार भूमि (मल त्याग जगह) गए शैक्ष कारण से एक ही जलपात्र ले गए हो उस हालात में वो शैक्ष रात्निक की पहले शौच-शुद्धि करे, बाहर विचार भूमि या विहार भूमि (स्वाध्यायस्थल) गए हो तब रात्निक के पहले ऐपिथिकप्रतिक्रमण करे ।
१२. किसी व्यक्ति रात्निक के पास वार्तालाप के लिए आए तब शैक्ष उसके पहले