Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 237
________________ २३६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद उसमें प्राणातिपात यानि पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति रूप एकेन्द्रियजीव, दो, तीन, चार, पाँच इन्द्रियवाले जीव का संघट्टा करना, परिताप उत्पन्न करना, किलामणा करनी, उपद्रव करना । मृषवाद दो तरह का-सूक्ष्म और बादर उसमें “पयलाउल्लामरुए" किसी साधु दिन में सोते हुए-झोके खा रहा था, दुसरे साधु ने उसे कहा कि दिन में क्यों सो रहे हो ? उसने उत्तर दिया कि मैं सो नहीं रहा । फिर से नींद आने लगी । झोका खाने लगा तब साधु ने कहा कि मत सो । तब प्रत्युत्तर मिला कि मैं सो नहीं रहा । ता यह सूक्ष्म मृषावाद । किसी साधु बारिस होने के बावजूद भी बाहर नीकले । दुसरे साधु ने कहा कि बारिस में क्यों जा रहे हो ? उसने कहा कि नहीं, मैं बारिस में नहीं जा रहा । ऐसा कहकर जाने लगा । यहाँ वासृधातु शब्द करना हो इसलिए शब्द होता हो तब मैं नहीं जाता । ऐसे छल के शब्द इस्तेमाल करे वो सूक्ष्म मृषावाद | किसी साधु ने भोजन के वक्त कहा कि भोजन कर लो । उसने उत्तर दिया कि मुजे पच्चक्खाण है-ऐसा कहकर तुरन्त खाने लगा, दुसरे साधु ने पूछा कि अभी-अभी पच्चक्खाण किया है, ऐसा कहता था और फिर भोजन करता है । तब उसने कहा कि क्या मैंने प्राणातिपात आदि पाँच महाव्रत की विरति का प्रत्याख्यान नहीं किया ? इस तरह से यह छलने के प्रयोग से सूक्ष्ममृपावाद लगे । सूक्ष्ममृषावाद और कन्यालीक आदि बादर मृषावाद कहलाता है । दिए बिना ग्रहण करना उसके दो भेद सूक्ष्म और बादर उसके तृण, पथ्थर, रक्षाकुंडी आदि ग्रहण करना वो सूक्ष्म अदत्तादान । घड़े बिना और घड़ा हुआ सुवर्ण आदि ग्रहण करने समान बादर अदत्तादान समजना । ___ और मैथुन दीव्य और औदारिक वो भी मन, वचन, काया, करण, करावण अनुमोदन ऐसे भेद करते हुए अट्ठारह भेदवाला जानना । और फिर हस्त कर्म सचित्त अचित्त भेदवाला या ब्रह्मचर्य की नवगुप्ति की विराधना करने द्वारा करके, शरीर वस्त्रादिक की विभूषा करने समान। मांडली में परिग्रह दो तरह से । सूक्ष्म और बादर । वस्त्रपात्र का ममत्वभाव से रक्षा करना । दुसरों को इस्तेमाल करने के लिए न देना वो सूक्ष्म परिग्रह, हिरण्यादिक ग्रहण करना या धारण कर रखना । मालिकी रखनी, वो बादर परिग्रह । रात्रि-भोजन दिन में ग्रहण करना और रात को खना, दिन में ग्रहण करके दुसरे दिन भोजन करना । रात को लेकर दिन में खाना। रात को लेकर रात में खाना । इत्यादि भेदयुक्त । [६२७-६३२] उत्तर गुण के लिए पिंड़ की जो विशुद्धि, समिति, भावना, दो तरह के तप, प्रतिमा धारण करना, अभिग्रह ग्रहण करना आदि उत्तर गुण जानना । उसमें पिंड़ विशुद्धि-सोलह उद्गम दोष, सोलह उत्पादना दोष, दस एषणा के दोष और संयोजनादिक पाँच दोष, उसमें उद्गम दोष इस प्रकार जानना । १. आधाकर्म, २. औदेशिक, ३. पूतिकर्म, ४.

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