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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
एकाग्र बने परीणामवाला आराधक आत्मा शास्त्र के जानकार दृढ़ चारित्रवाले गुण संपत्ति से युक्त गुरु लघुमात्रा सहित शब्दउच्चार करके अनुष्ठान करवाने के अद्वित्तीय लक्षवाले गुरु के वचन को बाधा न हो उस तरह जिसके वचन नीकलते हो । विनय आदि सम्मान हर्ष अनुकंपा से प्राप्त हुआ, कईं शोक संताप उद्धेग महा व्याधि का दर्द, घोर दुःख-दारिद्रय, क्लेश रोगजन्म, जरा, मरण, गर्भावास आदि समान दुष्ट श्वापद (एक जीव विशेष) और मच्छ से भरपुर भव सागर में नाव समान ऐसे इस समग्र आगम की-शास्त्र की मध्य में व्यवहार करनेवाले, मिथ्यात्व दोष से वध किए गए, विशिष्ट बुद्धि से खुद ने कल्पना किए हुए कुशास्त्र और उसके वचन जिसमें समग्र आशय-दृष्टांत युक्ति से घठीत नहीं होते ।
इतना ही नहीं लेकिन हेतु, दृष्टांत, युक्ति से कुमतवालों की कल्पीत बातों का विनाश करने के लिए समर्थ है । ऐसे पंच मंगल महा श्रुतस्कंधवाले पाँच अध्ययन और एक चुलिकावाले, श्रेष्ठ, प्रवचन देवता से अधिष्ठित, तीन पद युक्त, एक आलापक और साँत अक्षर के प्रमाणवाले अनन्त गम-पर्याय अर्थ को बतानेवाले सर्व महामंत्र और श्रेष्ठ विद्या के परम बीज समान ऐसे 'नमो अरिहंताणं' इस तरह का पहला अध्ययन वांचनापूर्वक पढ़ना चाहिए । उस दिन यानि पाँच उपवास करने के बाद पहले अध्ययन की वांचना लेने के बाद दुसरे दिन आयंबिल तप से पारणा करना चाहिए ।
__उसी प्रकार दुसरे दिन यानि साँतवे दिन कईं अतिशय गुण संपदायुक्त आगे बताए गए अर्थ को साधनेवाले आगे कहे क्रम के मुताबिक दो पदयुक्त एक आलापक, पाँच शब्द के प्रमाणवाले ऐसे 'नमो सिद्धाणं' ऐसे दुसरे अध्ययन को पढ़ना चाहिए । उस दिन भी आयंबिल से पच्चक्खाण करना चाहिए ।
उसी प्रकार पहले बताए हुए क्रम अनुसार पहले कहे अर्थ की साधना करनेवाले तीन पद युक्त एक आलापक, सात शब्द के प्रमाणवाले 'नमो आरियाणं' ऐसे तीसरे अध्ययन का पठन करना और आयंबिल करना ।
आगे बताए अर्थ साधनेवाले तीन पद युक्त एक आलापक और साँत शब्द के प्रमाणवाला नमो उवज्झायाणं ऐसे चौथे अध्ययन का पठन करना । आयंबिल करना ।
उसी प्रकार चार पद युक्त एक आलापक और नौ अक्षर प्रमाणवाला "नमो लोए सव्वसाहणं" ऐसे पाँचवे अध्ययन की वाचना लेकर पढ़ना और वो पाँचवे दिन यानि कुल दँशवे दिन आयंबिल करना ।
उसी प्रकार उसके अर्थ को अनुसरण करनेवाले ग्यारह पद युक्त तीन आलापक और तैंतीस अक्षर प्रमाणवाली ऐसी चुलिका समान ऐसो पंच नमोकारो, सव्व पावप्पणासणो | मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलं तीन दिन एक एक पद की वाचना ग्रहण करके, छठे, साँतवे, आँठवे दिन उसी क्रम से और विभाग से आयंबिल तप करके पठन करना । उसी प्रकार यह पाँच मंगल महा श्रुतस्कंध स्वर वर्ण, पद सहित, पद अक्षर बिन्दु मात्रा से विशुद्ध बड़े गुणवाले, गुरु ने उपदेश दिए हुए, वाचना दिए हुए ऐसे उसे समग्र ओर से इस तरह पढ़कर तैयार करो कि जिससे पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी अनानुपूर्वी वो अँबान के अग्र हिस्से पर अच्छी