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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
आलापक प्राप्त करके बच्चा सम्यक् तरह से आराधन न करे तो उसकी लघुता हो । उस को पहले धर्मकथा से भक्ति उत्पन्न करनी चाहिए । उसके बाद प्रियधर्म दृढधर्म और भक्तियुक्त बन गया है ऐसा जानने के बाद जितने पञ्चकखाण निर्वाह करने के लिए समर्थ हो उतने पच्चक्खाण उसको करवाना । रात्रि भोजन के दुविध, त्रिविध, चऊविह- ऐसे यथाशक्ति पच्चक्खाण करवाना ।
[६०२] हे गौतम ! ४५ नवकारसी करने से, २४ पोरिसी करने से, १२ पुरिमुड करने से, १० अवड्ड करने से और चार एकासणा करने से (एक उपवास गिनती में ले शकते है ।) दो आयंबिल और एक शुद्ध, निर्मल, निर्दोष आयंबिल करने से भी एक उपवास गिना जाता है ।) हे गौतम ! व्यापार रहिततासे रौद्रध्यान - आर्तध्यान, विकथा रहित स्वाध्याय करने में एकाग्र चित्तवाला हो तो केवल एक आयंबिल करे तो भी मासक्षमण से आगे नीकल जाता है । इसलिए विसामा सहित जितने प्रमाण में तप उपधान करे उतने प्रमाण में उसी गिनती में बढौती करके पंच- मंगल पढ़ने के लायक बने, तब उसे पंच-मंगल का आलावा पढ़वाना, वरना मत पढ़ाना ।
[६०३] हे भगवंत ! इस प्रकार करने से, दीर्घकाल बीत जाए और यदि शायद बीच ही मर जाए तो नवकार रहित वो अंतिम आराधना किस तरह साध शके ? हे गौतम! जिस वक्त सूत्रोपचार के निमित्त से अशठभाव से यथाशक्ति जो कोई तप की शुरूआत की उसी वक्त उसने उस सूत्र का अर्थ का और तदुभय का अध्ययन पठन शुरू किया ऐसा समजना । क्योंकि वो आराधक आत्मा उस पंच नमस्कार के सूत्र, अर्थ और तदुभय को अविधि से ग्रहण नहीं करता । लेकिन वो उस तरह विधि से तपस्या करके ग्रहण करता है कि जिससे भवान्तर में भी नष्ट न हो ऐसे शुभ-अध्यवसाय से वो आराधक होता है ।
[६०४] हे गौतम! किसी दुसरे के पास पढ़ते हो और श्रुतज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से कान से सुनकर दिया गया सूत्र ग्रहण करके पंचमंगल सूत्र पढ़कर किसी ने तैयार किया हो - क्या उसे भी तप उपधान करना चाहिए ?
हे गौतम! हा, उसको भी तप कराके देना चाहिए ।
हे भगवंत ! किस कारण से तप करना चाहिए ? हे गौतम ! सुलभ बोधि के लाभ के लिए | इस प्रकार तप-विधान न करनेवाले को ज्ञान- कुशील समजना ।
[६०५] हे भगवंत ! जिस किसी को अति महान् ज्ञानावरणीय कर्म का उदय हुआ हो, रात-दिन रटने के बाद भी एक साल के बाद केवल अर्धश्लोक ही स्थिर परिचित हो, वो क्या करे ? वैसे आत्मा को जावजीव तक अभिग्रह ग्रहण करना या स्वाध्याय करनेवाले का वेयावच्च और प्रतिदिन ढाई हजार प्रमाण पंचमंगल के सूत्र, अर्थ और तदुभय का स्मरण करते हुए एकाग्र मन से रटन करे । हे भगवंत ! किस कारण से ? (ऐसे कहते हो ?) हे गौतम! जो भिक्षु जावज्जीव तक के अभिग्रह सहित चारों काल यथाशक्ति वाचना आदि समान स्वाध्याय न करे उसे ज्ञानकुशील माना है ।
[६०६] दुसरा जो किसी यावज्जीव तक के अभिग्रह पूर्वक अपूर्वज्ञान का बोध करे,