Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 218
________________ महानिशीथ-३/-/४९३ तरह से याद रह जाए । उसके बाद आगे बताए अनुसार तिथि, करण, मुहूर्त, नक्षत्र, योग, लग्न, चन्द्रबल के शुभ समय जन्तुरहित ऐसे चैत्यालय - जिनालय के स्थान में क्रमसर आए हुए, अठ्ठम तप सहित समुद्देश अनुज्ञा विधि करवाके हे गौतम! बड़े प्रबन्ध आड़म्बर सहित अति स्पष्ट वाचना सुनकर उसे अच्छी तरह से अवधारण करना चाहिए । यह विधि से पंचमंगल के विनय उपधान करने चाहिए | २१७ [४९४] हे भगवंत ! क्या यह चिन्तामणी कल्पवृक्ष समान पंच मंगल महाश्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ को प्ररुपे है ? गौतम ! यह अचिंत्य चिंतामणी कल्पवृक्ष समान मनोवांछित पूर्ण करनेवाला पंचमंगल महा श्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ प्ररुपेल है । वो इस प्रकार : जिस कारण के लिए तल में तैल, कमल में मकरन्द, सर्वलोक में पंचास्तिकाय फैले रहे है । उसी तरह यह पंच मंगल महाश्रुतस्कंध के लिए समग्र आगम के भीतर यथार्थ क्रिया व्यापी है । सर्वभूत के गुण स्वभाव का कथन किया है । तो परम स्तुति किसकी करे ? इस जगत में जो भूतकाल में हो उसकी । इस सर्व जगत में जो कुछ भूतकाल में या भावि में उत्तम हुए हो वो सब स्तुति करने लायक है वैसे सर्वोत्तम और गुणवाले हो वे केवल अरिहंतादिक पाँच ही है, उसके अलावा दुसरे कोई सर्वोत्तम नहीं है, वो पाँच प्रकार के है- अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु । यह पाँच परमेष्ठि के गर्भार्थ यथार्थ गुण सद्भाव हो तो वो इस प्रकार बताए है । मनुष्य, देव और असुरवाले इस सर्व जगत को आँठ महाप्रातिहार्य आदि के पूजातिशय से पहचाननेवाले, असाधारण, अचिन्त्य प्रभाववाले, केवलज्ञान पानेवाले, श्रेष्ठ उत्तमता को वरे हुए, होने से 'अरहंत', समग्र कर्मक्षय पाए हुए होने से जिसका भवांकुर समग्र तरीके से जल गया है, जिससे अब वो फिर से इस संसार में उत्पन्न नहीं होते । इसलिए उन्हें अरूहंत भी कहते है । या फिर अति दुःख से करके जिन पर विजय पा शकते है वैसे समग्र आँठ कर्मशत्रुओं को निर्मथन करके वध किया है । निर्दलन टुकड़े कर दिए है, पीगला दिए है । अंत किया है, परीभाव किया है, यानि कर्म समान शत्रु को जिन्होंने हमेशा के लिए वध किया है । ऐसे 'अरिहंत' कहा है । इस प्रकार इस अरिहंत की कई प्रकार से समज दी है, प्रज्ञापना की जाती है, प्ररूपणा की जाती है । कहलाते है । पढाते है, बनाते है, उपदेश दिया जाता है । और सिद्ध भगवंत परमानन्द महोत्सव में महालते, महाकल्याण पानेवाले, निरूपम सुख भुगतनेवाले, निष्कंप शुकलध्यान आदि के अचिंत्य सामर्थ्य से अपने जीववीर्य से योग निरोध करने समान महा कोशीश से जो सिद्ध हुए है । या तो आँठ तरह के कर्म का क्षय होने से जिन्होंने सिद्धपन की साधना का सेवन किया है, इस तरह के सिद्ध भगवंत या शुक्लध्यान समान अग्नि से बंधे कर्म भस्मीभूत करके जो सिद्ध हुए है, वैसे सिद्ध भगवंत सिद्ध किए है, पूर्ण हुए है, रहित हुए है, समग्र प्रयोजन समूह जिनको ऐसे सिद्ध भगवंत ! यह सिद्ध भगवंत

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