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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहलाता है कि पंचमंगल महा श्रुतस्कंध को पढने के बाद ईरियावहिय सूत्र पढ़ना चाहिए ?
हे गौतम ! हमारी यह आत्मा जब-जब आना-जाना आदि क्रिया के परीणाम में परिणत हआ हो, कईं जीव, प्राण, भूत और सत्त्व के अनुपयोग या प्रमाद से संघट्टन, उपद्रव या किलामणा करके फिर उसका आलोचन प्रतिक्रमणन किया जाए और समग्र कर्म के क्षय के लिए चैत्यवंदन, स्वाध्याय, ध्यान आदि किसी अनुष्ठान किया जाए उस वक्त एकाग्र चित्तवाली समाधि हो या न भी हो, क्योकि गमनागमन आदि कई अन्य व्यापार के परीणाम में आसक्त होनेवाले चित्त से कुछ जीव उसके पूर्व के परीणाम को न छोड़े और दुर्ध्यान के परीणाम में कुछ काल वर्तता है । तब उसके फल में विसंवाद होता है । और जब किसी तरह अज्ञान मोह प्रमाद आदि के दोष से अचानक एकेन्द्रियादिक जीव के संघट्टन या परितापन आदि हो गए हो और उसके बाद अरेरे ! यह हमसे बूरा काम हो गया । हम कैसे सज्जड़ राग, द्वेष मोह, मिथ्यात्व और अज्ञान में अंध बन गए है । परलोक में इस काम के कैसे कटु फल भुगतने पड़ेंगे उसका खयाल भी नहीं आता वाकई हम क्रुर कर्म और निर्दय व्यवहार करनेवाले है । इस प्रकार पछतावा करते हुए और अति संवेग पानेवाली आत्माए अच्छी तरह से प्रकट पन में इरियावहिय सूत्र से दोष की आलोचना करके, बुराई करके, गुरु के सामने गर्दा करके, प्रायश्चित का सेवन करके शल्य रहित होता है । चित्त की स्थिरवाला अशुभकर्म के क्षय के लिए जो कुछ आत्महित के लिए उपयोगवाला हो, जब वो अनुष्ठान में उपयोगवाला बने तब उसे परम एकाग्र चित्तवाली समाधि प्राप्त होती है । उससे सर्व जगत के जीव, प्राणीभूत और सत्त्व को जो ईटफल हो वैसी इष्टफल की प्राप्ति होती है ।
उस कारण से हे गौतम ! इरियावहिय पडिक्कमे बिना चैत्यवंदन.स्वाध्यायादिक किसी भी अनुष्ठान न करना चाहिए । यदि यथार्थफल की अभिलाषा रखता हो तो, इस कारण से कि गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि पंचमंगल महाश्रुतस्कंध नवकार सूत्र अर्थ और तदुभय सहित स्थिर-परिचित करके फिर इरियावहिय सूत्र पढ़ना चाहिए ।
[५९३] हे भगवंत ! किस विधि से इरियावहिय सूत्र पढ़ना चाहिए ? हे गौतम ! पंच मंगल महाश्रुतस्कंध की विधि के अनुसार पढ़ना चाहिए ।
[५९४] हे भगवंत ! इरियावहिय सूत्र पढ़कर फिर क्या करना चाहिए ? हे गौतम ! शक्रस्तव आदि चैत्यवंदन पढ़ना चाहिए । लेकिन शक्रस्तव एक अठ्ठम और उसके बाद उसके उपर बत्तीस आयंबिल करने चाहिए । अरहंत सत्व यानि अरिहंत चेईआणं एक उपवास और उस पर पाँच आयंबिल करके | चौबीसस्तव-लोगस्स, एक छछ, एक उपवास पर पचीस आयंबिल करके । श्रुतस्तव-पुक्खरवरदीवड्ढे सूत्र, एक उपवास और उपर पाँच आयंबिल करके विधिवत् पढ़ना चाहिए ।
उस प्रकार स्वर, व्यंजन, मात्रा, बिन्दु, पदच्छेद, पद, अक्षर से विशुद्ध, एक पद के अक्षर दुसरे में न मिल जाए, उसी तरह वैसे दुसरे गुण सहित बताए सूत्र का अध्ययन करना। यह बताई गई तपस्या और विधि से समग्र सूत्र और अर्थ का अध्ययन करना । जहाँ जहाँ