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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
से सहते है, शारीरिक क्षमतापूर्वक उसका सामना करता है । मासिक भिक्षु प्रतिमाधारी साधु को एक दत्ति भोजन या पानी को दाता दे तो लेना कल्पे । यह दत्ति भी अज्ञात कुल से, अल्पमात्रा में दुसरों के लिए बनाए हुए अनेक द्विपद, चतुष्पद, श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण और भिखारी आदि के भिक्षा लेकर चले जाने के बाद ग्रहण करना कल्पे । और फिर यह दत्ति जहाँ एक व्यक्ति भोजन कर रहा हो वहाँ से लेना कल्पे । लेकिन दो, तीन, चार, पाँच व्यक्ति साथ बैठकर भोजन कर रहे हो तो वहाँ से लेना नहीं कल्पता । गर्भिणी, छोटे बच्चेवाली या बालक को दूध पीला रही हो, उसके पास से आहार-पानी की दत्ती लेना कल्पता नहीं, जिसके दोनो पांव उंबरे के बहार या अंदर हो तो उस स्त्री के पास से दत्ति लेना न कल्पे परंतु एक पांव अंदर और एक पांव बाहर हो तो उसके हाथ से लेना कल्पता है । मगर यदी वो देना न चाहे तो उसके हाथ से लेना न कल्पे ।।
मासिकी भिक्षु प्रतिमा धारण किया हए साधु को आहार लाने के तीन समय बताये है-आदि, मध्य और अन्त, जो भिक्षु आदि में गौचरी जावे, वह मध्य या अन्त में न जावे, जो मध्य में गौचरी जावे वह आदि या अन्त में न जावे, जो अन्त में गौचरी जावे वो आदि या मध्य में न जावे ।
__मासिक भिक्षु प्रतिमाधारी साधुको छह प्रकार से गौचरी बताई है । पेटा, अर्धपेटा, गौमूत्रिका, पतंगवीथिका, शम्बूकावर्ती, गत्वाप्रत्यागता । इन छह प्रकार की गौचरी में से कोई एक प्रकार की गौचरी का अभिग्रह लेकर प्रतिमाधारी साधु को भिक्षा लेना कल्पता है ।
जिस ग्राम यावत् मडंब में एकमासिकी भिक्षुप्रतिमा धारक साधु को यदी कोई जानता हो तो उसको वहां एक रात्रि रहना कल्पे, यदी कोई न जानता हो तो एक या दो रात्री रहना कल्पे, परंतु यदी वह उससे ज्यादा निवास करे तो वह भिक्षु उतने दिनों के दिक्षापर्याय का छेद या परिहार तप का भागी होता है ।
मासिकी भिक्षु प्रतिमाधारक साधु को चार प्रकार की भाषा बोलना कल्पता है-याचनी, पृच्छनी, अनुज्ञापनी तथा पृष्ठव्याकरणी ।
__ मासिकी भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न साधु को तीन प्रकार के उपाश्रयो की प्रतिलेखना करना, आज्ञा लेना अथवा वहाँ निवास करना कल्पे-उद्यानगृह, चारो ओर से ढका हुआ न हो ऐसा गृह, वृक्ष के नीचे रहा हुआ गृह । भिक्षु प्रतिमाधारक साधु को तीन प्रकार के संस्तारक की प्रतिलेखना, आज्ञा लेना एवं ग्रहण करना कल्पता है-पृथ्वीशीला, काठपाट, पूर्व से बिछा हुआ तृण ।
मासिकी भिक्षुप्रतिमा धारक साधु को उपाश्रय में कोई स्त्री-पुरुष आकर अनाचार का आचरण करता दिखाई दे तो उस उपाश्रय में आना या जाना न कल्पे, वहां कोई अग्नि प्रचलित हो जाए या अन्य कोई प्रज्वलित करे तो वहां आना या जाना न कल्पे, कदाचित् कोई हाथ पकड के बाहर निकालना चाहे तो भी उसका सहारा लेकर न नीकले, किन्तु यतनापूर्वक चलते हुए बाहर नीकले ।
मासिकी भिक्षु प्रतिमा धारक साधु के पांव में कांटा, कंकर या कांच घुस जाए, आंख में मच्छर आदि सूक्ष्म जंतु, बीज, रज आदि गारे तो उसको निकालना अथवा शुद्धि करना न कल्पे, किन्तु यतनापूर्वक चलते रहना कल्पे ।