Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ २१० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद कर्म बाँधे और गृहस्थ अबोधिलाभ न बाँधे । और फिर संयत मुनि इन तीन आशय से अबोधिलाभ कर्म बाँधते है । १. आज्ञा का उल्लंघन २. व्रत का भंग और ३. उन्मार्ग प्रवर्तन | [४४८] मैथुन, अप्काय और तेऊकाय इन तीन के सेवन से अबोधिक लाभ होता है । इसलिए मुनि को कोशीश करके सर्वथा इन तीनों का त्याग करना चाहिए । [४४९] जो आत्मा प्रायश्चित् का सेवन करे और मन में संक्लेश रखे और फिर जो कहा हो उसके अनुसार न करे, तो वो नरक में जाए । [४५०] हे गौतम! जो मंद श्रद्धावाला हो, वो प्रायश्चित् न करे, या करे तो भी क्लिष्ट मनवाला होकर करता है । तो उनकी अनुकंपा करना विरुद्ध न माना जाए ? [ ४५१-४५२] हे गौतम! राजादिक जब संग्राम में युद्ध करते है, तब उसमें कुछ सैनिक घायल होते है । तीर शरीर में जाता है तब तीर बाहर नीकालने से या शल्य का उद्धार करने से उसे दुःख होता है । लेकिन शल्य का उद्धार करने की अनुकंपा में विरोध नहीं माना जाता । शल्य का उद्धार करनेवाला अनुकंपा रहित नहीं माना जाता, वैसे संसार समान संग्राम में अंगोपांग के भीतर या बाहर के शल्य-भाव शल्य रहे हो उसका उद्धार करने में अनुपम अनुकंपा भगवंत ने बताई है । [४५३ - ४५५] हे भगवंत ! जब तक शरीर में शल्य रहा हो तब तक जीव दुःख का अहेसास करते है, जब शल्य नीकाल देते है तब वो सुखी होते है । उसी प्रकार तीर्थंकर, सिद्धभगवंत, साधु और धर्म को धोखा देकर विपरीत बनकर जो कुछ भी उसने अकार्य आचरण किया हो उसका प्रायश्चित् करके सुखी होता है । भावशल्य दूर होने से सुखी हो, वैसे आत्मा के लिए प्रायश्चित् करने से कौन-सा गुण होगा ? वैसे बेचारे दीन पुरुष के पास दुष्कर और दुःख में आचरण किया जाए वैसे प्रायश्चित् क्यों दे ? [ ४५६-४५७] हे गौतम ! शरीर में से शल्य बाहर नीकाला लेकिन झख्म भरने के लिए जब तक मल्हम लगाया न जाए, पट्टी न बाँधी जाए तब तक वो झख्म नहीं भरता । वैसे भावशल्य का उधार करने के बाद यह प्रायश्चित् मल्हम पट्टी और पट्टी बाँधने समान समजो | दुःख से करके रूझ लाई जाए वैसे पाप रूप झख्म की जल्द रूझ लाने के लिए प्रायश्चित् अमोघ उपाय है । [४५८-४६०] हे भगवंत ! सर्वज्ञ ने बताए प्रायश्चित् थोड़े से भी आचरण में, सुनने में या जानने में क्या सर्व पाप की शुद्धि होती है ? हे गौतम! गर्मी के दिनों में अति प्यास लगी हो, पास ही में अति स्वादिष्ट शीतल जल हो, लेकिन जब तक उसका पान न किया जाए तब तक तृषा की शान्ति नहीं होती उसी तरह प्रायश्चित् जानकर जब तक निष्कपट भाव से सेवन न किया जाए तब तक उस पाप की वृद्धि होती है लेकिन कम नहीं होता । [ ४६१] हे भगवंत ! क्या प्रमाद से पाप की वृद्धि होती है ? क्या किसी वक्त आत्मा सावध हो जाए और पाप करने से रुक जाए तो वो पाप उतना ही रहें या तो वृद्धि होते रूक न जाए ? [४६२] हे गौतम! जैसे प्रमाद से साँप का डंख लगा हो लेकिन जरुरतवाले को पीछे से विष की वृद्धि हो वैसे पाप की भी वृद्धि होती है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242