Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 209
________________ २०८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद शकते। सचित्त अचित्त या उभययुक्त बहुत या थोड़ा जितने प्रमाण में उसकी ममता रखते है, भोगवटा करते है, उतने प्रमाण में वो संगवाला कहलाता है । संगवाला प्राणी ज्ञान आदि तीन की साधना नहीं कर शकता, इसलिए परिग्रह का त्याग करो । [४१६] हे गौतम ! ऐसे जीव भी होते है कि जो परिग्रह का त्याग करते है, लेकिन आरम्भ का नहीं करते, वो भी उसी तरह भव परम्परा पानेवाले कहलाते है । [४१७] हे गौतम ! आरम्भ करने के लिए तैयार हुआ और एकेन्द्रिय एवं विकलेन्द्रिय जीव के संघटन आदि कर्म करे तो हे गौतम ! वो जिस तरह का पापकर्म बाँधे उसे तू समज। [४१८-४२०] किसी बेइन्द्रिय जीव को बलात्कार से उसी अनिच्छा से एक वक्त के लिए हाथ से पाँव से दुसरे किसी सली आदि उपकरण से अगाढ़ संघट्ट करे । संघट्टा करवाए, ऐसा करनेवाले को अच्छा माने । हे गौतम ! यहाँ इस प्रकार बाँधा हुआ कर्म जब वो जीव के उदय में आता है, तब उसके विपाक बड़े कलेश से छ महिने तक भुगतना पड़ता है । वो ही कर्म गाढ़पन से संघट्ट करने से बारह साल तक भुगतना पड़ता है । अगाढ़ परितापे करे तो एक हजार साल तक और गाढ़ परिताप करे तो दश हजार साल तक, अगाढ़ कीलामणा करे तो एक लाख साल गाढ़ कीलामणा करे तो दश लाख साल तक उसके परीणाम-विपाक जीव को भुगतने पड़ते है । मरण पाए तो एक करोड़ साल तक उस कर्म की वेदना भुगतनी पड़े । उसी तरह तीन, चार, पाँच इन्द्रियवाले जीव के लिए भी समजो । हे गौतम ! सूक्ष्म पृथ्वी काय के एक जीव की जिसमें विराधना होती है उसे सर्व केवली अल्पारंभ कहते है । हे गौतम ! जिसमें सूक्ष्म पृथ्वीकाय को विनाश होता है, उसे सर्व केवली महारंभ कहते है | [४२१] हे गौतम ! उस तरह उत्कट कर्म अनन्त प्रमाण में इकट्ठे होते है । जो आरम्भ में प्रवर्तते है वो आत्मा उस कर्म से बँधता है । [४२२-४२३] आरम्भ करनेवाला वद्ध, स्पृष्ट और निकाचित अवस्थावाले कर्म बाँधते है इसलिए आरम्भ का त्याग करना चाहिए । पृथ्वीकाय आदि जीव का सर्व भाव से सर्व तरह से अंत लानेवाले आरम्भ का जिसने त्याग किया हो वो सत्त्वरे जन्म-मरम, जरा सर्व तरह के दारिद्रय और दुःख से मुक्त होते है । [४२४-४२६] हे गौतम ! जगत में ऐसे भी जीव है कि जो यह जानने के बाद भी एकान्त सुखशीलपन की कारण से सम्यग् मार्ग की आराधना में प्रवृत्ति नहीं हो शकते । किसी जीव सम्यग् मार्ग में जुड़कर घोर और वीर संयम तप का सेवन करे लेकिन उसके साथ यह जो पाँच बाते कही जाएगी उसका त्याग न करे तो उसके सेवन किए गए संयम तप सर्व निरर्थक है । १. कुशील, २. ओसन्न-शिथिलपन ऐसा कठिन संयम जीवन ? ऐसा बोल उठे। ३. यथाच्छंद-स्वच्छंद, ४. सबल-दूषित चारित्रवाले, ५. पासत्थो । इन पाँच को दृष्टि से भी न देखे । [४२७] सर्वज्ञ भगवन्त ने उपदेश दीया हुआ मार्ग सर्व दुःख को नष्ट करनेवाला है। और शाता गौरव में फँसा हुआ, शिथिल आचार सेवन करनेवाला, भगवन्त ने बताए मोक्षमार्ग को छोड़नेवाला होता है । [४२८] सर्वज्ञ भगवन्त ने बताए एक पद या एक शब्द को भी जो न माने, रुचि

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