Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 180
________________ महानिशीथ-१/-/२६ १७९ अबोधि, शल्यरहितपन यह सब भवोभव होते है...इस प्रकार पाप शल्य के एक अर्थवाले कई पर्याय बताए । [२७-३०] एक बार शल्यवाला हृदय करनेवाले को दुसरे कईं भव में सर्व अंग ओर उपांग बार-बार शल्य वेदनावाले होते है । वो शल्य दो तरीके का बताया है । सूक्ष्म और बादर। उन दोनों के भी तीन तीन प्रकार है । घोर, उग्र और उग्रतर...घोर माया चार तरह की है । जो घोर उग्र मानयुक्त हो और माया, लोभ और क्रोधयुक्त भी हो । उसी तरह उग्र और उग्रतर के भी यह चार भेद समजना । सूक्ष्म और बादर भेद-प्रभेद सहित इन शल्य को मुनि उद्धार करके जल्द से नीकाल दे । लेकिन पलभर भी मुनि शल्यवाला न रहे । [३१-३२] जिस तरह साँप का बच्चा छोटा हो, सरसप प्रमाण केवल अग्नि थोड़ा हो और जो चिपक जाए तो भी विनाश करता है । उसका स्पर्श होने के बाद वियोग नहीं कर शकते । उसी तरह अल्प या अल्पतर पाप-शल्य उद्धरेल न हो तो काफी संताप देनेवाले और क्रोड़ भव की परम्परा बढ़ानेवाले होते है । . [३३-३७] हे भगवन् ! दुःख से करके उद्धर शके ऐसा और फिर दुःख देनेवाला यह पाप शल्य किस तरह उद्धरना वो भी कुछ लोग नहीं जानते । हे गौतम ! यह पापशल्य सर्वथा जड़ से ऊखेड़ना कहा है । चाहे कितना भी अति दुर्घर शल्य हो उसे सर्व अंग उपांग सहित भेदना बताया है...प्रथम सम्यग्दर्शन, दुसरा सम्यग्ज्ञान, त्रीसरा सम्यक्चारित्र यह तीनो जब एकसमान इकट्ठे हो, जीव जब शल्य का क्षेत्रीभूत बने और पापशल्य अति गहन में पहुँचा हो, देख भी न शकते हो, हड्डियाँ तक पहुँचा हो और उसके भीतर रहा हो, सर्व अंग-उपांग में फँसा हो, भीतर और बाहर के हिस्से में दर्द उत्पन्न करता हो वैसे शल्य को जड़ से उखेड़ना चाहिए । [३८-४०] क्रिया बिना ज्ञान निरर्थक है और फिर ज्ञान बिना क्रिया भी सफल नहीं होतो । जिस तरह देखनेवाला लंगड़ा और दौड़नेवाला अंधा दावानल में जल मरे । इसलिए हे गौतम ! दोनों का संयोग हो तो कार्य की सिद्धि हो । एक चक्र या पहिये से रथ नहीं चलता। जब अंधा और लगड़ा दोनों एक रूप बने यानि लंगड़े ने रास्ता दिखाया और अंधा उस मुताबिक चला तो दोनों दावानलवाले जंगल को पसार करके इच्छित नगर में निर्विघ्न सही सलामत पहुँचे । ज्ञान प्रकाश देते है, तप आत्मा की शुद्धि करते है, और संयम इन्द्रिय और मन को आड़े-टेढ़े रास्ते पर जाने से रोकते है । इस तीनों का यथार्थ संयोग हो तो हे गौतम ! मोक्ष होता है । अन्यथा मोक्ष नहीं होता । [४१-४२] उक्त-उस कारण से निशल्य होकर, सर्व शल्य का त्याग करके जो कोई नि-शल्यपन से धर्म का सेवन करते है, उसका संयम सफल गिना है । इतना ही नहीं लेकिन जन्म-जन्मान्तर में विपुल संपत्ति और ऋद्धि पाकर परम्परा से शाश्वत सुख पाते है । [४३-४७] शल्य यानि अतिचार आदि दोष उद्धरने की इच्छावाली भव्यात्मा सुप्रशस्तअच्छे योगवाले शुभ दिन, अच्छी तिथि-करण-मुहूर्त और अच्छे नक्षत्र और बलवान चन्द्र का योग हो तब उपवास या आयंबिल तप दश दिन तक करके आँठसों पंचमंगल (महाश्रुतस्कंध) का जप करना चाहिए । उस पर अठ्ठम-तीन उपवास करके पारणे आयंबिल करना चाहिए । पारणे के दिन चैत्य-जिनालय और साधुओ को वंदन करना । सर्व तरह से आत्मा को क्रोध

Loading...

Page Navigation
1 ... 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242