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नमो नमो निम्मलदंसणस्स
३९/१ महानिशीथ
छेदसूत्र - ६/१- हिन्दी अनुवाद
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अध्ययन- १ - शल्य उद्धरण
[१] तिर्थ को नमस्कार हो, अरहंत भगवंत को नमस्कार हो ।
आयुष्मान् भगवंत के पास मैंने इस प्रकार सुना है कि, यहाँ जो किसी छद्मस्थ क्रिया में वर्तते ऐसे साधु या साध्वी हो वो
इस परमतत्त्व और सारभूत चीज को साधनेवाले अति महा अर्थ गर्भित, अतिशय श्रेष्ठ, ऐसे " महानिसीह" - श्रुतस्कंध श्रुत के मुताबिक त्रिविध ( मन, वचन, काया) त्रिविध (करण, करावण, अनुमोदन) सर्व भाव से और अंतर- अभावी शल्यरहित होकर आत्मा के हित के लिए
अति घोर, वीर, उग्र, कष्टकारी तप और संयम के अनुष्ठान करने के लिए सर्व प्रमाद के आलम्बन सर्वथा छोड़कर सारा वक्त रात को और दिन को प्रमाद रहित सतत खिन्नता के सिवा, अनन्य, महाश्रद्धा, संवेग और वैरागमार्ग पाए हुए, नियाणारहित, वल-वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम को छिपाए बिना, ग्लानि पाए बिना, वोसिराऐ-त्याग किए देहवाले, सुनिश्चित् एकाग्र चित्तवाले होकर बारबार तप संयम आदि अनुष्ठान में रमणता करनी चाहिए ।
[२] लेकिन राग, द्वेष, मोह, विषय, कषाय, ज्ञान आलम्बन के नाम पर होनेवाले कई प्रमाद, ऋद्धि, रस, शाता इन तीनों तरह के गाव, रौद्रध्यान, आर्त्तध्यान, विकथा, मिथ्यात्व, अविरति ( मन, वचन, काया के) दुष्टयोग, अनायतन सेवन, कुशील आदि का संसर्ग, चुगली करना, झूठा आरोप लगाना, कलह करना, जाति आदि आठ तरह से मद करना, इर्ष्या, अभिमान, क्रोध, ममत्वभाव, अहंकार अनेक भेद में विभक्त तामसभाव युक्त हृदयं से
हिंसा, चोरी, झुठ, मैथुन, परिग्रह का आरम्भ, संकल्प आदि अशुभ परीणामवाले घोर, प्रचंड, महारौद्र, गाढ़, चिकने पापकर्म - मल समान लेप से खंडित आश्रव द्वार को बन्द किए बगैर न होना ।
यह बताए हुए आश्रव में साधु-साध्वी को प्रवृत्त न होना ।
[३] (इस प्रकार जब साधु या साध्वी उनके दोष जाने तब ) एक पल, लव, मुहूर्त, आँख की पलक, अर्ध पलक, अर्ध पलक के भीतर के हिस्से जितना काल भी शल्य से रहित है वो इस प्रकार है
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[४-६] जब मैं सर्व भाव से उपशांत बनूँगा और फिर सर्व विषय में विरक्त बनूँगा, राग, द्वेष और मोह का त्याग करूँगा... तब संवेग पानेवाला आत्मा परलोक के पंथ को एकाग्र मन से सम्यक् तरह से सोचे, अरे ! मैं यहाँ मृत्यु पाकर कहाँ जाऊँगा ?... मैंने कौन-सा धर्म प्राप्त किया है ? मेरे कौन-से व्रत नियम है ? मैंने कौन-से तप का सेवन किया है ? मैंने