Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 200
________________ महानिशीथ-२/३/३७७ १९९ [३७७-३८४] अलग आसन पर बैठी हुई, शयन में सोते हुई, मुँह फिराकर, अलंकार पहने हो या न पहने हो, प्रत्यक्ष न हो लेकिन तस्वीर में बताई हो उनको भी प्रमाद से देखे तो दुर्बल मानव को आकर्षण करते है । यानि देखकर राग हुए विना नहीं रहता । इसलिए गर्मी वक्त के मध्याह के सूर्य को देखकर जिस तरह दृष्टि बंध हो जाए, वैसे स्त्री को चित्रामणवाली दीवार या अच्छी अलंकृत हुइ स्त्री को देखकर तुरन्त नजर हटा लंना । कहा है कि जिसके हाथ पाँव कट गए हो, कान, नाक, होठ छेदन हुए हो, कोढ़ रोग के व्याधि से सड़ गई हो । वैसी स्त्री को भी ब्रह्मचारी पुरुष काफी दूर से त्याग करे । बुढ़ी भार्या या जिसके पाँच अंग में से शृंगार टपक रहा हो वैसी यौवना, बड़ी उम्र की कँवारी कन्या, परदेश गई हुई पतिवाली, बालविधवा और अंतःपुर की स्त्री स्वमत्त-परमत के पाखंड़ धर्म को कहनेवाली दीक्षित साध्वी, वेश्या या नपुंसक ऐसे विजातीय मानव हो, उतना ही नहीं लेकिन तिर्यंच, कुती, भेंस, गाय, गधी, खचरी, बोकड़ी, घेटी, पत्थर की बनी स्त्री की मूरत हो, व्यभिचारी स्त्री, जन्म से बिमार स्त्री । इस तरह से परिचित हो या अनजान स्त्री हो, चाहे जैसी भी हो और रात को आती जाती है, दिन में भी एकान्त जगह में रहती है वैसे निवास स्थान को, उपाश्रय को, वसति को सर्व उपाय से अत्यंत रूप से अति दूर से ब्रह्मचारी पुरुष त्याग करे । [३८५] हे गौतम ! उनके साथ मार्ग में सहवास-संलाप-बातचीत न करना, उसके सिवा बाकी स्त्रीयों के साथ अर्धक्षण भी वार्तालाप न करना । साथ मत चलना । ३८६] हे भगवंत ! क्या स्त्री की ओर सर्वथा नजर ही न करना? हे गौतम ! ना, स्त्री की ओर नजर नहीं करनी या नहीं देखना, हे भगवंत ! पहचानवाली हो, वस्त्रालंकार से विभूषित हो वैसी स्त्री को न देखना या वस्त्रालंकार रहित हो उसे न देखना ? हे गौतम ! दोनो तरह की स्त्री को मत देखना । हे भगवंत ! क्या स्त्रीयों के साथ आलाप-संलाप भी न करे ? हे गौतम ! नहीं, स्त्री के साथ वार्तालाप भी मत करना । हे भगवंत ! स्त्री के साथ अर्धक्षण भी संवास न करना ? हे गौतम ! स्त्री के साथ क्षणार्ध भी संवास मत करो । हे भगवंत ! क्या रास्ते में स्त्री के साथ चल शकते है ? -हे गौतम ! एक ब्रह्मचारी पुरुष अकेली स्त्री के साथ मार्ग में नहीं चल शकता । [३८७] हे भगवंत ! आप ऐसा क्या कहते हो कि स्त्री के मर्म अंग-उपांग की ओर नजर न करना, उसके साथ बात न करना, उसके साथ वास न करना, उसके साथ मार्ग में अकेले न चलना ? हे गौतम ! सभी स्त्री सर्व तरह से अति उत्कट मद और विषयाभिलाप के राग से उत्तेजित होती है । स्वभाव से उसका कामाग्नि हमेशा सुलगता रहता है । विषय की ओर उसका चंचल चित्त दौड़ता रहता है । उसके हृदय में हमेशा कामाग्नि दर्द ही देता है, सर्वदिशा और विदिशा में वो विषय की प्रार्थना करता है । इसलिए सर्व तरह से पुरुष का संकल्प और अभिलाष करनेवाली होती है । उस कारण से जहाँ सुन्दर कंठ से कोई संगीत गाए तो वो शायद मनोहर रूपवाला या बदसूरत हो, तरो-ताजा जवानीवाला या बीती हुई जवानीवाला हो । पहले देखा हुआ हो या अनदेखा हो । ऋद्धिवाला या रहित हो, नई समृद्धि पाई हो या न पाई हो, कामभोग से ऊँब गया हो या विषय पाने की अभिलाषावाला हो, बुढे देहवाला या मजबूत शरीरवाला हो,

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