Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 10
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 203
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद आधीन होकर उस स्त्री का [३८८] हे गौतम ! अब ऐसे वक्त में जो पुरुष संयोग के योग करे और स्त्री के आधीन होकर काम सेवन करे वो अघन्य है पुरुष आधीन है । इसलिए जो उत्तम पुरुष संयोग को आधीन न हो वो धन्य है । । संयोग करना या न करना २०२ [ ३८९] हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहलाता है कि जो पुरुष उस स्त्री के साथ योग न करे वो धन्य और योग करे वो अधन्य ? हे गौतम ! बद्धस्पृष्ट-कर्म की अवस्था तक पहुँची हुई वो पापी स्त्री पुरुष का साथ प्राप्त हो तो वो कर्म निकाचितपन में बदले, यानि स्पृष्ट निकाचित कर्म से बेचारी उस तरह के अध्यवसाय पाकर उसकी आत्मा पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रिय स्थावरपन में अनन्तकाल तक परिभ्रमण करे लेकिन दो इन्द्रियपन न पाए । उस प्रकार महा मुश्किल से कईं क्लेश सहकर अनन्ता काल तक एकेन्द्रियपन की भवदशा भुगतकर एकेन्द्रियपन का कर्म खपाते है और कर्म करके दो-तीन और चार इन्द्रियपन कलेश से भुगतकर पंचेन्द्रिय में मनुष्यत्व में शायद आ जाए तो भी बदनसीब स्त्रीरूप को प्राप्त करनेवाला होता है । नपुंसकरूप से उत्पन्न हो । और फिर तिर्यंचपन में बेशूमार वेदना भुगतना पड़ता । हमेशा हाहाकार करनेवाले जहाँ कोई शरणभूत नहीं होता । सपने में भी सुख की छाँव जिस गति में देखने को नहीं मिलता । हंमेशा संताप भुगतते हुए और उद्वेग पानेवाले रिश्तेदार स्वजन बँधु आदि से रहित जन्मयपर्यन्त कुत्सनीय, गर्हणीय, निन्दनीय, तिरस्करणीय ऐसे कर्म करके कई लोगों की तारीफ करके सेंकड़ों मीठे वचन से बिनती करके उन लोगों के पराभव के वचन सुनकर मुश्किल से उदर पोषण करते करते चारों गति में भटकना पड़ता है । हे गौतम ! दुसरी बात यह समजो कि जिस पापी स्त्री ने बद्ध, स्पृष्ट और निकाचित कर्म दशा उपार्जन करके उस स्त्री की अभिलाषा करनेवाला पुरुष भी उतनी ही नहीं लेकिन उसके हालात से भी उत्कृष्ट या उत्कृष्टतम ऐसी अनन्त कर्मदशा उपार्जन करे और एसे बद्ध स्पृष्ट और निकाचित करे, इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि जो पुरुष उसका संग नहीं करता वो धन्य है और संग करता है वो अधन्य है | [३९०] हे भगवंत ! कितने तरह के पुरुष है जिससे आप इस प्रकार कहते हो ? हे गौतम! पुरुष छ तरह के बताए है वो इस प्रकार १. अधमाधम, २. अधम, ३. विमध्यम, ४. उत्तम, ५. उत्तमोत्तम ६. सर्वोत्तम । [ ३९१] उसमें जिसे सर्वोत्तम पुरुष कहा, वो जिसके पाँव अंग उत्तम रूप लावण्य युक्त हो । नवयौवनवय पाया हो । उत्तम रूप लावण्य कान्ति युक्त ऐसी स्त्री मजबूरी से भी अपने गोद में सो साल तक बिठाकर कामचेष्टा करे तो भी वो पुरुष उस स्त्री की अभिलाषा न करे । और फिर जो उत्तमोत्तम नाम पुरुष बताए वो खुद स्त्री की अभिलाषा न करे । लेकिन शायद मुठ्ठी के तीसरे हिस्से जितना अल्प मन से केवल एक समय की अभिलाषा करे लेकिन दुसरे ही पल मन को रोककर अपने आत्मा को निन्दकर गर्हणा करे, लेकिन दुसरी बार उस जन्म में स्त्री की मन से भी अभिलाषा न करे । [३९२] और फिर जो उत्तमोत्तम तरह के पुरुष हो वो अभिलाषा करनेवाली स्त्री को देखकर पलभर या मुहूर्त तक देखकर मन से उसकी अभिलाषा करे, लेकिन पहोर या अर्ध

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