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जीतकल्प-३२
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[३२] अनन्तकाय वनस्पति, दो, तीन, चार इन्द्रियवाले जीव को संघट्टन, परिताप या उपद्रव करने से पुरिमड से उपवास पर्यन्त और पंचेन्द्रिय का संघटन करते हुए एकासणा, अणागाढ़ परिताप से आयंबिल, आगाढ़ परिताप से उपवास तप प्रायश्चित् आता है उपद्रव करने से एक कल्याणक तप प्रायश्चित् आता है ।
[३३] मृषावाद, अदत्त, परिग्रह यह तीनों द्रव्य-क्षेत्र-काल या भाव से सेवन करनेवाले को जघन्य से एकासणा, मध्यम से आयंबिल, उत्कृष्ट से एक उपवास प्रायश्चित् ।।
[३४] वस्त्र, पात्र, पात्र बँध आदि खरड़ जाए, तेल, घी आदि के लेपवाले रहे तो एक उपवास, झूठ, हरड़े औषध आदि की संनिधि से एक उपवास, गुड़, घी, तेल आदि की संनिधि से छठ्ठ, बाकी की संनिधि से तीन उपवास तप प्रायश्चित् । [३५-४३] यह नौ गाथा का "जीत कल्प चूर्णी" की सहायता से किया गया
अनुवाद यहां बताया है। औद्देसिक के दो भेद ओघ-सामान्य से और विभाग से । सामान्य से परिमित भिक्षादान समान दोष में पुरिमड्ड और विभाग से तीन भेद उद्देसो-कृत और कर्म उद्देसो के लिए पुरिमड्ड, कृतदोष के लिए एकासणा और कर्मदोष के लिए आयंबिल और उपवास तप प्रायश्चित् । पूति दोष के दो भेद सूक्ष्म और बादर । धूम अंगार आदि सूक्ष्म दोष, उपकरण और भोजन-पान वो बादर दोष जिसमें उपकरणपूति दोष के लिए पुरिमड्ड और भोजन-पान पूति दोष के लिए एकासणा-तप प्रायश्चित् ।
मिश्रजात दोष दो तरह से-जावंतिय और पाखंड-जावंतियमिश्र जात के लिए आयंबिल और पाखंडमिश्र के लिए उपवास, स्थापना दोष दो तरह से-अल्पकालीन के लिए नीवि और दीर्घकालीन के लिए पुरिमड्ड, प्राभृतिक दोष दो तरह से-सूक्ष्म के लिए नीवि, बादर के लिए उपवास, प्रकृष्टकरण दोष दो तरह से अप्रकट हो तो पुरिमड्ड और और प्रकट व्यक्त रूप से आयंबिल, क्रीत दोष के लिए आयंबिल, प्रामित्य दोष और परिवतीर्त दोष दो तरीके सेलौकिक हो तो आयंबिल, लोकोत्तर हो तो पुरिमड्ड, आहृत दोष दो तरह से-अपने गाँव से हो तो पुरिमड्ड, दुसरे गाँव से हो तो आयंबिल । उद्भिन्न दोष दो तरह से दादर हो तो पुरिमड्ड और बन्द दरवाजा-अलमारी खोले तो आयंबिल ।
मालोपहृत दोष दो तरह से-जघन्य से पुरिमड्ड और उत्कृष्ट से आयंबिल, आछेद्य दोष हो तो आयंबिल, अनिसृष्ट दोष के लिए आयंबिल, अध्ययपूरक दोष तीन तरह से-जावंतिय, पाखंडमिश्र, साधुमिश्र । जावंतिय दोष में पुरिमड और बाकी दोनों के लिए एकासणा ।
धात्रि दूति-निमित्त आजीव, वणीमग वो पांच दोष के लिए आयंबिल तिगीच्छा दो तरीके से सूक्ष्म हो तो पुरिमड्ड, बादर हो तो आयंबिल, क्रोध-मान दोष में आयंबिल मायादोष के लिए एकासणा । लोभ दोष के लिए उपवास, संस्तव दोष दो तरह से वचन संस्तव के लिए पुरिमल, सम्बन्धी संस्तव के लिए आयंबिल, विद्या, मंत्र, चूर्ण, जोग सर्व में आयंबिल तप प्रायश्चित् ।
शंकित दोष में जिस दोष की शंका हो वो प्रायश्चित् आता है । सचित्तसंसर्ग दोष तीन तरह से-(१) पृथ्वीकाय संसर्ग दोष में नीवि, मीश्रकर्दम में पुरिमड्ड निर्मिश्र कर्दम में आयंबिल, (२) जल मिश्रित में निवि, (३) वनस्पति मिश्रित में प्रत्येक मिश्रित हो तो पुरिमड्ड, अनन्तकाय